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जय अर जिन वसु अरि क्षय करेय। जय मल्लि मल्ल हत मोहमल्ल,
जय मुनिसुव्रत व्रतशल्ल दल्ल ॥७॥ जय नमि नित वासव-नुत सपेम,
जय नेमिनाथ वृषचक्र नेम । जय पारमनाथ अनाथनाथ,
जय वर्द्धमान शिवनगर साथ ।।८।।
घत्ता
चौबीस जिनंदा आनंदकंदा पापनिकंदा सुखकारी। तिनपद जुगचंदा उदय अमंदा वासव वंदा हितधारी ॥ अह्रीं श्रीवृपभादिचतुर्विशतिजिनेभ्यो महाब निर्वपामीति स्वाहा भुक्ति मुक्तिदातार, चौबीसों जिनराजवर । तिन पद मन वचधार, जो पूज सो शिव लहैं ।
इत्याशीर्वादः
श्री आदिनाथ जिन पूजा
अडिल्ल परम पूज्य वृषभेश स्वयंभूदेव जू,
पिता नाभि मरुदेवि करें सुर सेव जू