________________
नवम अनुत्तर दश सुविशालं, लाख बनावै सहस चवालं । दशम प्रश्न व्याकरण विचारं, लाखतिरानव सोल हजारं॥५॥ ग्यारम सूत्र विपाक मुभाखं, एक कोड चौरासी लाखं । चार कोडि अरु पंद्रह लाखं, दो हजार सब पद गुरु शाखं ॥६॥ द्वादश दृप्टिवाद पनभेदं, इक सौ आठ कोडि पन वेदं । अडसठ लाख सहस छप्पन हैं, सहित पंचपद मिथ्या हन हैं ॥७॥ इक सौ बारह कोडि वखानो, लाख तिरासी ऊपर जानो। ठावन सहस पंच अधिकाने, द्वादश अंग सर्वपद माने ॥८॥ कोडि इकावन आठहि लाखं, सहस चुरासी छहसौ भाखं । साढ़े इकीस सिलोक बताये, एक एक पद के ये गाये ॥६॥
धत्ता जा बानी के ज्ञान में, सूझे लोक अलोक ।
'द्यानत' जग जयवंत हों, सदा देत हों धोंक। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्य महापं निर्वपामीति स्वाहा ।
[इत्याशीर्वाद]
सोलहकारण पूजा
[कविवर द्यानतरायजी] सोलह कारण भाय तीर्थकर जे भये । हरषे इन्द्र अपार मेरुपै ले गये ।। पूजा करि निज धन्य लख्यो बहु चावसौं।
हमहू षोडश कारन भाव भावसौं॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणानि ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।