Book Title: Jinendra Poojan
Author(s): Subhash Jain
Publisher: Raghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi

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Page 144
________________ १४० ॐ ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्रावतरावतर संवौषट् । ॐ ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । चौपाई आंचलीबद्ध सीतल-मिष्ट-सुवास मिलाय, जलसों पूजी श्रीजिनराय। महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥ पांचों मेरु असी जिनधाम, सब प्रतिमा को करों प्रनाम । महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन - विजय-अचल-मन्दिर - विद्यमालिपंचमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिन बिम्बेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा। जल केशर करपूर मिलाय गंधसौं पूजौं श्रीजिनराय । महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥पाँचों०।। ॐ ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धिजिनचंत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यो चन्दनं अमल अखंड मुगंध मुहाय, अच्छत सौं पूजी जिनराय । महासुख होय, देख नाथ परम मुख होय ॥पाँचों०॥ ॐ ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धिजिनचंत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यो अक्षतान् वरन अनेक रहे महकाय, फूल सों पूजौं श्रीजिनराय । महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय |पांचों०।। ॐ ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धिजिनचंत्यालयस्थजिनविम्बेभ्यो पुष्पं निर्व० मन-बांछित बहु तुरत बनाय, चरुसों पूजी श्रीजिनराय । महासुख होय, देखे नाथ परम मुख होय ॥पाँचों०।। ॐ ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धिजिनचंत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यो नैवेद्य निर्व०

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