Book Title: Jinendra Poojan
Author(s): Subhash Jain
Publisher: Raghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi

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Page 160
________________ १५६ कैलास श्री सम्मेद श्री गिरनार गिरि पूजूं सदा । चम्पापुरी पावापुरी पुनि और तीरथ सर्वदा || चौबीस श्री जिनराज पूजूं बीम क्षेत्र विदेह के । नामावली इक सहस वसु जप होंय पति शिवगेह के || दोहा जल गंधाक्षत पुप्प चरु दीप धूप फल लाय । सर्व पूज्य पद पूज हूं बहु विध भक्ति बढ़ाय ।। ॐ ह्रीं निर्वाणक्षेत्रेभ्यो महार्घ निर्वपामीति स्वाहा । शान्ति- पाठ शास्त्रोक्त विधि पूजा महोत्सव सुरपति चक्री करें। हम सारिखे लघुपुरुष कैसे यथाविधि पूजा करें ॥ धनक्रिया ज्ञानरहित न जाने रीति पूजन नाथजी । हम भक्तिवश तुम चरण आगे जोड़ लीने हाथ जी ॥ १ ॥ दुखहरण मंगलकरण आशा भरन जिन पूजन मही । यह चित्तमें सरधान मेरे शक्ति है स्वयमेव ही ॥ तुम सारिखे दातार पाये काज लघु जाचूं कहा । मुझ आपसम कर लेहु स्वामी यही इक वांछा महा ॥२॥ संसार भीषण विपमवन में कर्म मिल आतापियो । तिसदाहतें आकुलित चिरतें शांति थल कहूं ना लियो । तुम मिले शांतस्वरूप शांति करण समरथ जगपती । वसुकर्म मेरे शांत कर दो शांति में पंचमगती ||३|| जबलों नहीं शिव लह्यों तबलों देहु यह धन पावना | सत्संग शुद्धाचरण श्रुत अभ्यास आतम भावना ।। तुमविन अनंतानंत काल गयो रुलत जगजाल में ।

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