Book Title: Jinendra Poojan
Author(s): Subhash Jain
Publisher: Raghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi

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Page 151
________________ १४७ ॐ ह्रीं उत्तमममामार्दवार्जवसत्यशोचसंयमतपस्त्यागाकिंवन्याह्मचर्येति दश लक्षणधर्माय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन केशर गार, होय सुवास दशों दिशा । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूर्जी सदा ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । अमल अखंडित सार, तंदुल नन्द्र समान शुभ। भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजों सदा ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । फूल अनेक प्रकार, महकें अरध-लोकलों । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजों सदा ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नेवज विविध निहार, उत्तम षट-रस-संजुगत । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजी सदा ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय नैवेद्य निर्वामीति स्वाहा । बाति कपूर सुधार, दीपक-जोति सुहावनी । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजों सदा । ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । अगर धूप विस्तार, फैले सर्व सुगंधता । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजों सदा ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय धूपं निर्वामीति स्वाहा । फलकी जाति अपार, घान-नयन-मन मोहने । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजों सदा ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय फलं निर्वामीनि स्वाहा।

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