Book Title: Jinendra Poojan
Author(s): Subhash Jain
Publisher: Raghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
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हरिगीतिका छंद शुचि सित सलिल की धार, शशि रस तुल्य गुण की खान है। सो चरण सन्मुख ईश के, भवसिंधु-सेतु समान है। वसुकर्मजेता मोक्षनेता, मदनतन अभिराम है। भगवान बाहुबलीश को, नित शीशनाय प्रणाम हैं। ॐ ह्रीं भगवते श्रीबाहुबलिजिनाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। केशर कपूर सुगन्धयुत श्रीखण्ड संग घसाइये । भवतापभंजन देव पद की भव्य पूज रचाइये ॥वसुकम०।।
ॐ ह्रीं भगवते श्रीवाहुबलिजिनाय संसारतापविनाशनाय चंदन निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत अखंड सुधांशुकरसम धवल शुद्ध चुनायके । अक्षय महापद हेतु चरचूं चरण नित गुण गायके ॥वमुकर्म०॥
ॐ ह्रीं भगवते श्रीबाहुबलिजिनाय अक्षयपदप्राप्तयं अक्षतान् निर्वपामोति स्वाहा।
अम्भोज चंपक मालती बेला गुलाव प्रसून ले । पदपद्म पूंजू देवके, हैं मदन मद जिनने दले ॥वमुकर्मः।।
ॐ ह्रीं भगवते श्रीबाहुबलिजिनाय कामवाणविध्वंमनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
अतिमिष्ट मोहन भोग मोदक घेवरादिक घृतमने । पकवान से भगवान को पूंजूं क्षुधादिक जिन हने ॥वमुकम०॥
ॐ ह्रीं भगवते श्रीवाहुबलिजिनाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निवपामीति स्वाहा।

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