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हर्ता कर्ता तुम किरपाल,
कीड़ी कुञ्जर करत निहाल । तुम अनन्त ज्ञान अल्प मो ज्ञान,
__ कहं लग प्रभुजी करों बखान ।।३६।। आगम पन्थ न सूझे मोहि,
तुम्हरे चरन बिना किमि होहि। भये प्रसन्न तुम साहस कियो,
दयावन्त तब दर्शन दियो ॥३७॥ साह पुत्र जब चेतन भयो,
हँसत हँसत वह घर तब गयो। धन दर्शन पायो भगवन्त,
आज अंग मुख नयन लसन्त ॥३८॥ प्रभु के चरण कमल में नयो,
जन्म कृतारथ मेरो भयो । कर युग जोड़ नवाऊँ शोश,
मुझ अपराध क्षमो जगदोश ।।३।। सत्रह सौ पंद्रह शुभ यान,
नारनौल तिथि चौदस जान । पढ़े सुने तहाँ परमानन्द,
__ कल्पवृक्ष महा सुखकन्द ॥४०।। अष्ट सिद्धि नवनिधि सो लहै,