Book Title: Jambudwip Pragnapati Namak Mupangam Part_1
Author(s): Shantichandra Gani
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीजम्बू- द्वीपशान्तिचन्द्रीया वृत्तिः ॥३०४॥
रसूत्रे महाहिमवान् वर्षधरपर्वतः क्षुद्रहिमवन्तं वर्षधरपर्वतं प्रणिधाय-प्रतीत्य क्षुद्रहिमवदपेक्षयेत्यर्थः, योजनाया विचि-8 वक्षस्कारे त्रत्वात् आयामापेक्षया दीर्घतरक एव उच्चत्वाद्यपेक्षया महत्तरक एवेति, अथवा महाहिमवन्नामाऽत्र देवः पल्योपमस्थि-8 महाहिमवतिकः परिवसति, सूत्रे आयामोच्चत्वेत्यादावेकवद्भावः समाहाराद् बोध्यः ॥ अथ हरिवर्षनामकवर्षावसरः
|ति कूटानि
कहि णं भन्ते! जम्बुद्दीवे दीवे हरिवासे णामं वासे पं०?, गो० ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं महाहिमवन्तवासहरपव्वयस्स उत्तरेणं पुरत्थिमलवणसमुदस्स पञ्चस्थिमेणं पञ्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जम्बुद्दीवे २ हरिवासे णामं वासे पण्णत्ते एवं जाव पञ्चत्थिमिल्लाए कोडीए पञ्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुढे अट्ठ जोअणसहस्साई चत्तारि अ एगवीसे जोअणसए एगं च एगूणवीसइभागं जोअणस्स विक्खम्भेणं, तस्स बाहा पुरथिमपञ्चत्थिमेणं तेरस जोअणसहस्साई तिण्णि अ एगसढे जोअणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोअणस्स अद्धभागं च आयामेणंति, तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुदं पुट्ठा पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं जाव लवणसमुदं पुट्ठा तेवत्तरि जोअणसहस्साई णव य एगुत्तरे जोअणसए सत्तरस य एगूणवीसइभाए जोअणस्स अद्धभागं च आयामेणं, तस्स धणुं दाहिणणं चउरासीई जोअणसहस्साई सोलस जोअणाई चचारि एगूणवीसइभाए जोअणस्स परिक्खेवेणं। हरिवासस्स णं भन्ते! वासस्स केरिसए आगारभावपडोआरे पं०!, गोमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीहिं तणेहि अ उवसोमिए एवं मणीणं तणाण य वण्णो गन्धो फासो सहो भाणिअव्वो, हरिवासे णं तत्थ २ देसे तहिं २ बहवे खुड्डा खुड्डिआओ एवं जो सुसमाए अणुभावो सो चेव अपरिसेसो वत्तव्वोत्ति । कहि णं भन्ते! हरि
॥३०॥
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