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'तत्ता' एवं 'इदन्ता' का युगपत् अवगाहन वियोग की उल्बणता तथा आत्मापराध-शंकादि करने वाली बुद्धि को प्रत्यभिज्ञा' कहते हैं ६। के कारण नष्ट हो जाता है तो दुष्यन्त काव्यकौतुककार आचार्य भट्टतौत (१० म. (पशु) शकुन्तला तथा भरत (पशुपति, आत्मशती ई०) बुद्धि को तात्कालिक मानते हैं। स्वरुप) को स्वतः पहचान लेता है९ । यही परन्तु यही बुद्धि जब स्मृति (अतीतविषया)
यथोक्तमस्मत् परमगुरुभिः श्रीमदुत्पलपादैः से भी युक्त होकर सक्रिय हो जाय तो वही तैस्तैरप्युपयाचितैरुपनत प्रतीति प्रत्यभिज्ञा, (पहचान, peogrutione)
स्तन्व्या स्थितोऽप्यन्तिके, बन जाती है।
कान्तो लोकसमान
__एवमपरिज्ञातो न रन्तु यथा । वस्तुतः जीव का स्वरूप है-शिवोऽहम्
लोकस्यैष तथानवेक्षितगुणः अर्थात् मैं शिव हूँ ! परन्तु अज्ञान-वश यही
स्वात्मापि विश्वेश्वरो, शिव स्वरुप पशु (जीव अथवा अंश) जब
नैवाल निजवैभवाय तदिय पशुपति (शिव अथवा अंशी) से विच्छिन्न हो
तत्प्रत्यभिज्ञोदिता ॥ जाता है तो स्वयं को नाम-रुपात्मक स्वीकार
____९. राजा-प्रिये । क्रौर्यमपि मे त्वयि करने लगता है, परन्तु निरन्तर शास्त्रानु
प्रयुक्तमनुकूलपरिणाम संवृत्तम् , शीलन करने तथा साधक जनों की संगति में
यदहमिदानी त्वया प्रत्यभिज्ञातमात्मान रहने के कारण यदि सौभाग्यवश यह अज्ञान
पश्यामि । समाप्त हो जाता है, तो जीव को अपने स्मृतिभिन्नमोहतमसो दिष्टया प्रमुख शिवत्व का बोध हो जाता है । शिवोऽहम्
स्थितासि मे सुमुखि । की अनुभूति प्रत्यभिज्ञा८ है ।
उपरागान्ते शशिनः समुपगता
रोहिणी योगम् ॥ -शाकुन्तलम् ७/२२ शाकुन्तल में दुर्वासा का शाप ही अज्ञान
यहां विशेष तथ्य यह है कि प्रत्यहै । जब अज्ञान का वह आवरण पश्चात्ताप
भिज्ञान लोक में दोनो ओर से होता ६. तत्तेदन्तावगाहिनी प्रतीतिः प्रत्यभिज्ञा ।
है । उपर्युत वाक्य में तो राजा स्वयं
को शकुन्तला द्वारा 'प्रत्यभिज्ञात' ७. स्मृतिव्यतीतविषया मतिरागामिगोचरा ।
मानते हैं, परन्तु सत्य यह है कि . बुद्धिस्तात्कालिकी प्रोता
सर्वप्रथम उन्होंने ही शकुन्तला को प्रज्ञा त्रैकालिकी मता ॥
पहचाना है। प्रज्ञा नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा मता ॥ नाटक के चौथे अंक में सखियां राजा
-काव्यकौतुकम्। को ही प्रत्यभिज्ञानमंथर होने की आशंका ८. इसी तथ्य को लोचनकार अभिनवने करती हैं-सखि ! यदि नाम स राजा
ध्वन्यालोक १/८ की व्याख्या में नवागता प्रत्यभिज्ञानमंथरो भवेत् ततस्तस्मा इदवधू के द्रष्टान्त से समझाया है
मात्मनामधेयाङ्कितमड'गुलीयक दर्शय ।
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