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श्रेणियों के निर्माण के विविध मत विज्ञान (घ) पृथ्वी में क्षेत्रीय-परिवर्तन के -जगत् में प्रचलित है।)
समर्थक जैनशास्त्र भारतवर्ष की स्थिति आज जैसी सदा जैन-शास्त्रों से अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये से नहीं है। मारवाड़ में जहाँ 'ओसिया' जा सकते हैं, जिन से यह सिद्ध होता है है, वहां पहले कभी समुद्र था । इसका कि पृथ्वी के स्वरुप में भी परिवर्तन होते है । प्रमाण यह है कि आज भी ओसिया के
___यहां यह शंका उपस्थित की जा सकती भासपास स्थित पहाडी में १७ फीट ऊंची है कि जैनागमों में तो पथ्वी शाश्वत बताई २९ फीट चौडी व ३७ फीट चौडी व ३७ गई है । १ इस स्थिति में उसमें महान् कीट लम्बी आकार की काली लकडी की परिवर्तन कैसे सम्भव है ? जैन आचार्य विशाल नौकाओं के अवशेष मिले हैं, जिससे पज्यपाद ने सर्वार्थ सिद्धि ग्रन्थ मैं२ तथा यह प्रतीत होता है कि सम्भवतः वहां कोई आचार्य अकलंक ने तत्वार्थ राजवार्तिक में ३ बन्दरगाह था, इस बन्दरगाह के नष्ट हो जाने स्पष्ट लिखा भी है कि भरतादिक क्षेत्र में से यहां के व्यापारी देश के विभिन्न भागों भौतिक व क्षेत्रीय परिवर्तन सम्भव नहीं है। में फैल गये । ये व्यापारी 'ओसवाल' नाम
क्या इसका कोई ऐसा शास्त्रीय प्रमाण • से प्रसिद्ध है।
उपलब्ध है जिससे यह सिद्ध होता हो कि भगर्भ-शास्त्रियों को हिमाचल-पर्वत की भरतादिक्षेत्र में भौतिक या क्षेत्रीय परिवर्तन बोटी पर सीप, शंख, मछलियों के अस्थि- हो सकता है ? ..
जर प्राप्त हुए हैं जिनसे हिमालय पर्वत की लाखों वर्ष पूर्व समुद्र में स्थित होने १. इमा ण भते रयणप्पभा पुढवी कालआ की पुष्टि होती है । जिओलोजिकल सर्वे केवञ्चिर होइ ? गोयमा ! ण कपाइ ण आफ इंडिया के भूतपूर्व डाइरेक्टर डॉ. वी.
आसी ण कयाइ णत्थि ण कयाइ ण एन. चोपडा को भारतवर्ष में वाराणसी भविस्सइ भुविं च भवइ य भविस्सइ य (उ. प्र.) के एक कूए से ऐसा कीडा प्राप्त धुवा णियया सासया अक्खया अव्वया हुआ जिसका अस्तित्व आज से दस करोड अवट्ठिया णिच्चा (जीवाजीवा. सु.३/१/७८ वर्ष पूर्व भी था । उक्त प्रकार का कीडा २. न तयोः क्षेत्रयोवृद्धिहासौ स्तः, असम्भआज भी आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड व दक्षिणी वात् । तत्स्थानां मनुष्याणां वृद्धि-हासौ अफ्रीका में प्राप्त होता है । वाराणसी में भवतः (त. सु.-३/२७ पर सर्वार्थसिद्धि इस कीडे की प्राप्ति पे भारतवर्ष का भी टीका)। क्षेत्रयो द्विह्रासयोरसंगच्छमाअत्यन्त प्राचीन काल में आस्ट्रेलिया आदि नत्वात् (त. सु. ३/२७ पर श्रुतसागरीय की तरह किसी अखण्ड व अविभक्त प्रदेश से वृत्ति)। सम्बद्ध होना पुष्ट हो जाता है ।
३. राजवार्त्तिक (त. सु. ३/२७)
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