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"सूर्य सिद्धान्त” में पृथ्वी और सूर्य
(ले. डो. भगवतीलाल राजपुरोहित १२, वीर दुर्गादास मार्ग उज्जैन, म. प्र.)
__ भारतीय ज्योति- विज्ञान में "सूर्य इस ग्रन्थ में वेधशाला के विभिन्न यन्त्रों सिद्धान्त" का महत्वपूर्ण स्थान है। वह की निर्माणपद्धति तथा उनकी उपयोगितासर्वमान्य तथा प्रामाणिक ग्रन्थ है। पद्धति भी स्थान स्थान पर उपलब्ध होती ___इसमें गणित के आधार पर विभिन्न है। यथा चन्द्राकार ज्ञान की पद्धति तथ्यों का विश्लेषण कर उन्हें सिद्ध किया (१०/१४) इसी प्रकार मध्यरेखा का स्थानगया है । और यह सर्वमान्य है कि
संकेत भी दिया गया है। गणित सार्वदेशिक तथा सार्वकालिक
लका तथा मेरुपर्वत के मध्य सीधी सत्य का उद्घोषक है।
. रेखा खींची जाए तो वह रोहीतक अवन्ती भारतीय-ज्योतिष में पृथ्वी को स्थिर ,
और कुरुक्षेत्र से होकर जाएगी । :
श्लोक- राक्षसालयदेवौकः- मानकर समस्त गणनाएँ की गयी हैं । तथा
शैलयोमध्यसूत्रगाः । समस्त ग्रह तथा नक्षत्र चल बताये गये हैं। अन्य ग्रहों के समान सूर्य भी संक्रमणशील
रोहीतकमवन्ती च है । और प्रतिमास एक राशि पार कर
यथा सन्निहित सरः ॥ सूर्य० १/६२ दूसरी राशि में चला जाता है । इस प्रकार
सूर्य-सिद्धान्त का बारहवाँ अध्याय वह बारह राशियों को बारह मासों में चल हमारे अभीष्ट से विशेष सम्बद्ध है। कर सम्पूर्ण राशिचक्र को पूर्ण कर लेता है । वहां कुछ प्रश्नों के उत्तर दिये गये
सूर्य-सिद्धान्त भी इस पद्धति का अनु- है। . मोदन कस्ता है ।
___आरंभ में एक प्रश्नावली उपस्थित कर परन्तु इस ग्रन्थ में कुछ महत्वपूर्ण और दी गयी है अनंतर उसके उत्तर दिये गये हैं। अधुनातन कहे जाने वाले तथ्यों की ओर भी जो तथ्य प्रस्तुत हुवे हैं, तदनुसार ग्रन्थकारसकेत किया गया है ।
• सेश्वर सांख्य के अनुरुप सृष्टि का यह ग्रन्थ सिद्ध करता है कि विकास स्वीकारता है।
भारतीय वैज्ञानिक- परम्परा अत्यन्त . बासुदेव को परब्रह्म मानता है । (१२/१२) सावधान थी । और वह मध्यकाल में अवरुद्ध . लगता है भगवद्गीता की परंपरा का नहीं होती तो अवश्य ही बहुत आगे रहती. इसमें अनुमोदन हो रहा है ।
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