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में आविष्कृत व समर्थित हुए 1 अनेक वैज्ञानिकों ने जैन आचार्यों की सूक्ष्मदर्शिता को स्वीकारा है । आज आवश्यकता है जैन: आगमों व शास्त्रों के गम्भीर अध्ययन की, और अपेक्षा है कुतर्क छोड कर श्रद्धा भावना की, तभी इसी शास्त्रों से अमूल्य विचाररत्नों को हम ग्रहण कर सकते हैं ।
वाद ( द्वादशांग) के लुप्त-भाग में वे सब बातें हों जो अब उपलब्ध होतीं तो वैज्ञानिक - जगत् उपकृत होता, साथ ही विज्ञान से तथाकथित विरोध की स्थिति भी पैदा नहीं होती ।
जैन आगमों व शास्त्रों में अनेक सिद्धान्त ऐसे हैं, जो परवती काल में वैज्ञानिक-जगत्
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विचार परिपक्व कब होते है ? विचारोंमें स्वाद्वाददृष्टिका समन्वय होने पर परिपक्वता आती है, परिपक्व विचारों के द्वारा ही किसी वस्तुका यथार्थ ज्ञॉन होता है.
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