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उपलब्ध जैन ग्रन्थों में ज्योतिश्चक्र की व्यवस्था
ले. रतनलालजी कटारीया केकडी (राज.) ooooooooooooooooooooooooớetogeeeee9999999
सम्पूर्ण जैन वाड्मय प्रथमानुयोग, रुपये भेटमें दूगा । उत्तर में मैंने जैसे करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग गजट में छपाया था कि वकील साहब, ऐसे चार अनुयोगों में गुफित है। रुपये किसी मध्यस्थ के यहां जमा करा दे
सृष्टि की तमाम रचनाओं का वृत्तांत तो मै सिद्ध करने का प्रयत्न करुंगा । करणानुयोग में पाया जाता है। आजकल बस उसी दिन से वकील साहब चूप . करणानुयोग का अधिकांश विषय आक्षेप का हो गए। स्थान बना हुआ है।
- इसी एक उदाहरण से पता लगता है ? सर्यादि के भ्रमण से रात्रि-दिन की कि लोग इस मामले में कितने स्वच्छन्द है ? जैसी व्यवस्था जैन-ग्रन्थों में पायी जाती और वे शंका उठाने की कितनी जल्दी है, उस पर तो हमारे कतिपय भाइयों को करते हैं ? । . विश्वास ही नहीं है । और एक इसी बात यह विषय कोई बच्चों का खेल नहीं है से वे लोग सारे ही जैनधर्म को अश्रद्धा की जो चुटकियों में ही उडी दिया जावे । बड़ा नजर से देखते है ।
गहन है और ऐसा गहन है जिस पर ऐसे लोग जितनी तत्परता शंकाये सम्मिलित रुप से विचारशील, विद्वानों के करने में दिखाते हैं, उसकी शतांश भी कोशिश द्वारा गम्भीर दृष्टि से बड़ी शांति के साथ उनके दूर करने की नहीं करते । यह भी विचार होना चाहिये । नहीं कि शका करने वालों ने उपलब्ध जैन इसकी गूढ ग्रंथियों के सुलझाने के ग्रन्थों को भी अच्छी तरह देख लिया हो। साधन भी वर्तमान में बहुत ही विकट हो तत्त्व-निर्णय के इच्छुक का काम केवल चले है। . शका खडी करने का ही नहीं है, किन्तु प्रथम तो इस विषय के प्रन्थ ही पूरे उसके समाधान का उद्योग करना भी है। नही मिलते । अमितगति कृत चन्द्रप्रज्ञप्ति
पाठकों को याद होगा कि बाबू सुनी जाती है बह कहाँ है ? सर्वार्थ सिद्धि, जगरुपसहायजी वकील ने पहिले एक विज्ञप्ति
राजवार्तिक में समतल से ज्योतिष्कों की निकाली थी कि
ऊंचाई निरुपक उक्त च गाथा आती है वह 'जैन शास्त्रों से कोई छह मास का रात्रि- कहां की है ? त्रिलोकसार, त्रिलोकप्रज्ञप्ति में दिन सिद्ध कर दें तो उसे मैं एक हजार तो वह है नहीं । त्रिलोकप्रज्ञप्ति की निम्न
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