________________
निर्माण हुआ, वर्तमान पांच महासागरों के पहुंचता है, इस समय पश्चिम विदेह व अस्तित्व की पृष्ठभुमि में भी यही कारण हे। पूर्व विदेह में मध्याह्न रहता है । इन के मध्य में उपर उठी हुई भुमि वढती (६) सूर्य, चन्द्रमा-ये दोनों ही लगभग गई और उनमें अनेक द्वीप बन गए जिनमें जम्बूद्वीप के किनारे-किनारे में मेरु पर्वत एशिया आदि उल्लेखनीय हैं । बर्तमान में की प्रदक्षिणा देते हुए घूमते है, और ६-६ जो गंगा, सिन्धु आदि नदियां प्राप्त हैं वे मास तक उतरायण-दक्षिणायन होते रहते कृत्रिम है, या मूल गंगा आदि नदियों से हैं। इस आर्य-क्षेत्र में कई ऐसे स्थान निकली जल-राशि से निकली अल-राशि से इतने गहरे व नीचे हो गए हैं जिनका निर्मीत है।
विस्तार मीलों तक है । ये स्थान इतने नीचे
व गहरे हैं कि जब सूर्य उत्तरायण होता है (५) समस्त जम्बूद्वीप में २-२ सूर्य व तभी उन पर प्रकाश पड़ सकता है । कुछ चन्द्र माने गए है । इसके पीछे रहस्य यह स्थान ऐसे हैं जहां दोनों सूर्यों का प्रकाश है कि जम्बूद्वीप के ठीक मध्य भाग में जो पड़ सकता है, और इसलिए उन दोनों सुमेरु पर्वत है, वह एक लाख योजन ऊचा स्थानों में दो चार महीने सतत सूर्य का (आधुनिक माप में कई करोड मील ऊंचा) प्रकाश रहता है, तथा सूर्य के दक्षिणायन है । इसके अतिरिक्त, कई कुलाचल आदि होने के समय दो चार महीने सतत अन्धभी है । इन पहाडों के कारण एक सुर्य का कार रहता है । प्रकाश सब तरफ नहीं जा सकता । एक पृथ्वी की उच्चता व नीचता के कारण सूर्य का प्रकाश सब तरफ नहीं जा सकता ही एसा होता है कि एक ही समय कहीं एक सूर्य-बिमान दक्षिण की तरफ चलता धूप (सूर्य का प्रकाश) होती है तो कहीं है, तो दूसरा उत्तर की तरफ, उत्तरगामी छाया । इस तथ्य पर प्रकाश डालने हेतु, सूर्य निषध पर्वत की पश्चिम दिशा के ठीक आचार्य विद्यानन्दि ने उज्जैन का उदाहरण मध्य भाग को लांघता हुआ पश्चिम विदेह दिया है । वे कहते हैं, जैसे उज्जैन के (६ घंटों में) पहुंचता है, तो दूसरी तरफ उत्तर में मूमि कुछ नीची हो गई है, और दक्षिणगामी सूर्य नील पर्वत की पूर्व दिशा दक्षिण में कुछ ऊंची। अतः निचली भमि के मध्य-भाग को पार करता हुआ पूर्व में छाया की वृद्धि, और ऊंचे भूभाग में विदेह में (६ घंटों में) पहुंचता है । इस छाया की हानि प्रत्यक्ष होती है१ । कोई पदार्थ समय भरत व ऐरावत क्षेत्र में रात हो या भू-भाग सूर्य से जितना अधिक दूर जाती है । उत्तरगामी सूर्य (६ घंटों में) १. ततो नोज्जयिन्या उत्तरोत्तरभूमौ निम्नाया पश्चिम विदेह के मध्य पहुचता है । दूसरी मध्यदिने छायावृद्धि विरुध्यते । नापि तरफ दक्षिणगामी सूर्य (उन्ही ६ घंटों में) ततो दक्षिणक्षितौ समुन्नतायां छायाहानि पूर्व विदेहके ढीक मध्य पूर्व विदेहके मध्यमें उन्नतेतराकारभेदद्वारायाः शक्तिभेदप्रसिद्धे
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org