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दायित्व समजकर यावच्छक्य प्रयत्नों से पूरी सावधानी रखते हुए हमने भी सभी विवरण यहां प्रस्तुत करते हुए अपने विचार प्रस्तुत किए हैं ।
इन विमर्शो में विज्ञान- प्रदर्शित मान्य ताओं को ही हमने ग्रहण किया है, यथासम्भव भारतीय तत्वों को इनमें स्थान इस लिये नही दिया कि जब विज्ञान की बात विज्ञान से ही सिद्ध नहीं होती, तो शास्त्र से सिद्ध कैसे हो सकती है ? ।
संक्षेप में विज्ञान द्वारा पृथ्वी के उपग्रह के रूप में चन्द्र की स्वीकृति होते हुए भी एपोलो को ऊंचा फेंकना सेटन ६ को ३६ मंजिली बनाना, एपोलो-यान की गति, चन्द्र की गति जाने-आने का समय, गुरुत्वाकर्षण की सीमा, वातावरण टेलिवीजन कार्यक्रम, योग्य - नियंत्रण की सीमा, गतिविधि सम्बन्धी विसंवादी निवेदन, चन्द्रमा का पहुँचते समय वहाँ देखी गई वस्तुऐ आदि ऐसी बाते हैं जिन पर मनन जौर चिंतन करने पर समा धान के स्थान पर अनेक नई समस्याएं' उठ खड़ी होती है ।
पूज्य - मुनिराज पं. श्री अभयसागरजी म० गणिव ने विज्ञान को कभी भी हेय नहीं माना है और न कभी वे अपने विचारों से विज्ञान का विरोध ही करते है । उनकी तो मान्यता है कि “विज्ञान तत्त्व ज्ञान का अंग "Without science Philosophy is behind. अर्थात् विज्ञान के विना तत्वज्ञान अंधा है । किन्तु इससे यह भी नहीं भूलना चाहिये कि - " Without Phiolsophy
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seience is laime” अर्थात् तत्वज्ञान बिना विज्ञान लंगडा है ।"
अनेकबार व्यक्ति अपनी रुढ मान्यताओंके कारण सत्य को छिपाने को भी बाध्य हो जाता है ।
हाइड्रोजन वायु के संशोधन के प्रकाण्ड अध्येता केलिफोर्निया विश्वविद्यालय डो. हेरल्ड उरेने विज्ञान की प्रगति के विषय में अमेरिकन एसोसिएशन की वार्षिक बैठक में दिनांक २८-१२-६८ को जो मार्मिक विचार व्यक्त किये थे उनमें एक स्थान पर उन्होंने कहा था ।
"जो लोग ऐसा मानते हैं कि चन्द्रमा पर लावा प्रवाह है उन्हें चित्र में भी लावा प्रवाहित होता दिखाई देगा ।" ( गुजरात समाचार दि. २९-१२-६८) ।
इस लिये अन्तरिक्ष यात्री लोवेल के मस्तिष्क ज्वालामुखी की बात बहुत रूढ होने के कारण अपने विचारों को दिखाई देते हुए सत्य से कुछ दूर खिसकनेका प्रयत्न करता है । यह मानव-सुलभ विकृति है । वस्तुतः चन्द्र पर क्या है ? यह २३०००० मीलसे संकटपूर्ण यात्रा करके तथा प्रत्यक्ष देखने की सम्भावना रहते हुए भी निश्चित नहीं हो सकता ।
यह बात गंभीरतापूर्वक विचारणीय हैं । इसी प्रकार व्योमयात्रियों के निम्न लिखित कथन भी गंभीरता पूर्वक विचारणीय है.
(१) “चन्द्र का प्रदेश गड्डेवाला, किसी विशिष्ट - रंग से शून्य ज्वालामुखी के मैदान वाला है ।
(२) व्योमयात्री बौरमेन ने टेलिवीजन
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