Book Title: Jambudwip Part 03
Author(s): Vardhaman Jain Pedhi
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 150
________________ IS ५३ प्रकार, सृष्टि-विज्ञान-सम्बन्धी आध्यात्मिक द्रष्टि है 1८ इस साहित्य का श्रवण - मनन से उचित व अपेक्षित सिद्ध होता है । (७) अंगप्रविष्ट जैन द्वादशांगी तथा बाह्य साहित्य में सृष्टि-विज्ञान-सम्बन्धी प्रचुर सामग्री भरी पडी है । इसके अतिरिक्त जैन आचार्यों ने सूष्टि - निरुपण से सम्बन्धित अनेक स्वतंत्र ग्रन्थों की रचना की है ।९ इन सबसे यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन परम्परा में सृष्टि-विज्ञान का अध्ययन-अध्यापन अत्यन्त श्रद्धा व रुचि का विषय रहा है । प्रस्तुत शोधपत्र में जैन आगमों मे प्राप्त पृथ्वीसम्बन्धी निरुपणको प्रस्तुत करते हुए आधुनिक विज्ञान के आलोक में उसका सारीक्षण किया जा रहा है । (३) पृथ्वियों की संख्या जैन परम्परा में पृथ्वियों की संख्या कहीं सात, १०, तो कहीं आठ११ भी बताई गई हैं । ८. जंबूदीवपणत्ति (गि० ) – १३/१५७ ९. द्रष्टव्य - सत्यशीघ्र यात्रा (प्र० वर्द्धमान जैन पेढी, पालीताना), पृ० ४२ - ६६, १०. हरिवंश पु० ४/४३-४५, भगवती सू० १२ / ३ / १-२ ( गोयमा, सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ) 1 स्थानांग ——७/६६९ ( २३-२४), त्रिषष्टि०. २।३।४८६, लोकप्रकाश-विनय - विजयगणि-- रचित, १२।१६०-१६२, ११. तिलोयपण्णत्ति - २।२४, घवला - १४५, ६, ६४ । गोयमा ! अठ पुढवीओ पण्णत्ताओ । तं जहा - रयणापमा जाव सीप भारा' (भगवती सू० ६।८।१) । स्थानांग - ८/८४१ (१०८) । प्रज्ञापनासूत्र - २७९ (१) । Jain Education International आठ पृथ्वीओं के नाम इस प्रकार है: (१) रत्नप्रभा (२) शक प्रभा (३) बालुकाप्रभा (४) पंकप्रभा (५) धूमप्रभा (६) तमः प्रभा (७) महातमः प्रभा १. (८) ईषत्प्राग्भारा, जिस मध्यलोक में हम निवास कर रहे हैं, वह रत्नप्रभा पृथ्वी का ऊपरी पटल (चित्रा) हैं, जिसका विस्तार ( लम्वाई व चौडा आदि) असंख्य सहस्र योजन है । २ किन्तु १. सात पृथ्बियों के बास्तविक नाम इस प्रकार हैं – घम्मा, वंशा, सेला, अंजना, अरिष्ठा, मघा, माघवती । रत्नप्रभा आदि नाम नही, अपितु 'घम्मा' आदि तो पृथ्वियों के गोत्र हैं । द्र० स्थानांग —७|६६९ ( सुत्तागमो - भा० २, पृ० २७८), भगवती सूत्र - १२।३।३, जीवा - भिगम सूत्र - ३ | ११६७, लोकप्रकाश१२।१६३-१६४, त्रिलोकसार—१४५ तत्त्वार्थ' सून्न - भाष्य - ३ | १, तिलोयपण्णत्ति - १/१५३ बरांग - चरित - १ / १२, हरिवंश पु० ४।४६, त० सू० ३।१ पर श्रुतसागरीय टीका में 'घम्मा' आदि संज्ञाएं नरकभूमियों की है। २. रयणप्पभा पुढवी केवइयं आयामविखभेणंपन्नते । गोयमा, अस खेज्जाई जोयणसहस्साई आयाम विख भेण अस खेज्जाइ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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