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(५) जैन साहित्य को चार ( विषयों) में विभाजित किया एक अनुयोग के अन्तर्गत, सम्बन्धी साहित्य का समावेश किया गया है । दिगम्बर परम्परा में यह अनुयोग 'करणानुयोग' के नाम से, २ तथा श्वेताम्बर परम्परा में 'गणितानुयोग' के रूप में ३ प्रसिद्ध है ।
अनुयोगों गया है । १ सृष्टिविज्ञान -
(६) जैन पुराणों का वर्ण्य विषय सृष्टिवर्णन भी है। स्वयं जिनेन्द्र देव ने त्रिलोक
१. आर्य रक्षित ने ( वि० सं० प्रथमशती) ने शिक्षार्थी श्रमणों की सुविधा के लिए आगम-पठन पद्धति का चार भागों में विभाजित किया ( द्र० नन्दी थेराबली - २, गाथा - १२४) । विशेषावश्यक - • भाष्य- २२८६-२२६१,
अनुयोगों के नाम दिगम्बर- परम्परा में इस प्रकार हैं - (१) प्रथमानुयोग, (२) करणानुयोग, (३) चरणानुयोग, (४) द्रव्यानुयोग | श्वेताम्बर - परम्परा में नाम इस प्रकार हैं - (१) चरणकरणानुयोग, (२) धर्म' कथानुयोग, (३) गणितानुयोग, (४) द्रव्यानुयोग | ( द्र० आवश्यक नियुक्ति-गा० ७७३-७४, सूत्रतांग चूर्ण, पत्र-४, आवश्यक-वृत्तिपृ० ३०, रत्नकर डश्रावकाचार - ४३-४६, द्रव्यसंग्रह - ४२ पर- टीका
२. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, १/४३-४४, आदिपुराण- २/९९,
३. आवश्यक- नियुक्ति - १२४,
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स्वरुप किया है |४ पुराणों का परिगणन 'धर्म'कथा' के अन्तर्गत किया जाता है ॥५ धर्मकथा को स्वाध्याय के रूप में 'तप' माना गया है । ६ अतः पुराणादि- वर्णित सृष्टिविज्ञान की सामग्री के मनन का भी होना स्वाध्याय के अनुष्ठान से स्वाभाविक है ।
सृष्टि - विज्ञान की सामग्री से परिपूर्ण 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' तथा 'सूर्य' प्रज्ञप्ति' का स्वाध्याय काल प्रथम ब अंतिम पौरुषी में विहित माना गया है ।७
आ० पद्मनन्दिकृत 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ' (दिगम्बर ग्रन्थ) के अनुसार, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को पढ़ने व सूनने वाला मोक्ष - गामी होता
४. त्रिजगत्समवस्थानं नरकप्रस्तरानपि ।
द्वीपाब्धिहृदशैलादीन यथास्मायुपादिशत् (आदिपुराण - २४ / १५७) । तिलोयपण्णत्ति—१/६०,
जैन पुराणों का वर्ण्य विषय सृष्टिवर्णन भी है - 'जगत्-त्रयनिवेशश्च कल्यस्य संग्रहः । जगतः सृष्टिसंहारौ चेति कृत्स्नमिहोद्यते' (आदिपुराण - २।११६) || हरिवंश पुराण - १/७१, पद्मपुराण – ११४३,
५. आदि पु०११२४, १/६२-६३, १/१०७११६, पद्मपुराण - ११३९ हरिवंशपुराण - १११२७,
१।२७
६. द्र० त० सू० ९/२०, ९/२५, भगवती आराधना - १०७, भगवती सूत्र - २५,७० ८०१, स्थानांग — ५/३/५४१, मूलाचार३६३, उत्तराध्ययन- ३०/३४, २६/२७, ७. स्थार्नाग - ३|१|१३९,
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