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अर्थ कदापि नहीं रहा कि विज्ञान की धारा को भारतवासियों ने सदा के लिये बिदा कर दिया | हाँ ! इतना अवश्य है कि विज्ञान के इस पक्ष के समक्ष अपना आत्मसमर्पण कभी नहीं किया ।
कुछ समय से कि एपोलो यान पहुचने का प्रयास वहाँ पहुँच भी गया । तब इस सम्बन्ध में भारतीय मनीषियोंने, तत्त्व- चिंतकों विचार करना प्रारम्भ किया, जिसमें दो धाराएं प्रमुख हैं ।
यह चर्चा चल रही है ८- ९-१० ने चन्द्र पर किया, और एपोलो-११
प्रथम विचारधारा के अनुसार एपोलो ११ चन्द्र, पर पहुंच गया है और वह हमारे शास्त्रो - पुराणो में वर्णित तथ्यों को स्वयं प्रमाणित कर रहा है। हमारे पूर्वाचार्यों ने जो कुछ लिखा वह सत्य है, उदाहरणार्थ ' ' कल्याण मासिक (गोरखपुर) में प्रकाशित पू. स्वामी श्री करपात्रीजी महाराज का लेख अथवा ज्योतिष्मती (सोलन) त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादकीय देखें |
अमेरिकन अन्तरिक्षयात्री २९ जुलाइ ६९ को चन्द्रमा के भूतल पर उतर गये, मानव के चरण स्पर्श से चन्द्रलोक पुलकित हो उठा, एपोलो-११ के निर्माण में २४ अरब डॉलर व्यय हुआ । तीन हजार से अधिक व्यक्ति, वैज्ञानिक, तकनीरी, शिल्पी, डाक्टर, इंजीनियर आदि अहर्निश कार्य करते रहे । एपोलो ११ के कार्यक्रम में एक मिनिट का भी अन्तर नं पडा । चन्द्रलोक में उतरे हुए अन्तरिक्ष- यात्रियों का पथ प्रदर्शन भूतल में बने अन्तरिक्ष घर
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से हुआ, यह भूलना न चाहिये कि चन्द्रलोक का शासक भूतलवासी मानव ही रहा, चन्द्रमा पर पहुंचा अन्तरिक्षयात्री विश्व को एक प्रबल ' अणुबम से भस्म कर सकेगा ? मानव के साधारण जीवन में क्या अन्तर आएगा ? क्या बाढ़, तूफान, आंधी, भूकम्प का वह नियन्त्रण कर सकेगा ? मानव जीवन को और अधिक सुखी बनाने में वह किस मात्रा में सहायक होगा ? यह तो भविष्य बताएगा । आज तक तो यही सिद्ध हुआ है कि पुराणों में लिखी यह बात - रावण का पुत्र नारायण प्रति दिन प्रातः चन्द्रलोक की सैर करने जाता था । सर्वथा असत्य नहीं है और काल्पनिक भी नहीं । आदि ( ज्योतिष्मती वर्ष १३ अंक १) ।”
ईधर कुछ विद्वानों ने आधिभौतिक, आधिदैविक आध्यात्मिक दृष्टि द्र त्रिविध रूप को स्पष्ट करते हुए अपने शास्त्रों के संरक्षण का प्रयास किया है ।
दूसरी . विचारधारा के अनुसार एपोलो यान चन्द्रमा तक पहुँचा ही नहीं है । इस कथन की प्रामाणिकता के लिये चन्द्रलोक, वहां तक जाने के मार्ग, वहां आदि का शास्त्रीय दृष्टि से विमर्श, तथा विज्ञानवादियों द्वारा सूचित मार्ग, गति आदि के आधार पर ही तथ्यों का अन्वेषण प्रमुख स्वीकृत हुआ है ।
रुप
" तत्त्वज्ञान वस्तु का सम्पूर्ण दर्शन कराता है और विज्ञान वस्तु के आंशिक स्वरुप का प्रायोगिक कक्षा से दर्शन करता है । इसी आधार पर पं. गणिवर्य श्री अभयसागरजी
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