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___EX E3 X E3 3 3 3 3 3 3 3 3 3 3 3 3 3 चन्द्रयात्रा : वास्तविक तथ्य कया ?
- ले. डो. तेजसिंह गौड-उझौन E3 3 3 E3E3. E3 E3 E3 E3 E3 E3 E3 E3 E3 3 3 3 ___ भारतीय आस्तिक-परम्परा के प्रतीक के जो कुछ मानता आया है, उसमें विसंवाद रूप में चन्द्र युग युगों से हमारी निष्ठा हो सकता है किन्तु विवाद नहीं । पर आज और आस्था का अभिनव आलोक रहा हैं। जब विज्ञान के कथित पहोराए ने चन्द्र पर अपने गुण-विशेष के कारण चन्द्र चिरकाल पहुँचने और वहां से पृथ्वी के समान ही से अमृत वर्षो माना गया है और दिव्य प्राप्त धरातल की मिट्टी और चट्टानों के टुकडे लोक की विशिष्ट-विभूतियों में से एक अनुपम ले आने की घोषणा की है, उससे विचारवान देव के रुप में भी वह आराधना का मान व्यक्ति के लिये एक चिन्तन की नइ दिशा बिन्दु इष्ट-फलदायी कल्पतरु तथा कामितार्थ खुल गई है। प्रिय चिंतामणि भी रहा है।
वह विज्ञान की सत्यता को पारखने के . प्राणिमात्र चन्द्र के प्रति कृतज्ञ है। लिये बाध्य हो गया, इस लिये नहीं कि प्रत्येक धर्म-सम्प्रदाय चन्द्र की चिरन्तन शक्ति विज्ञान ने चन्द्र पर विजय प्राप्त कर ली है। के प्रति नत-मस्तक होगा, उसके गौरवगान गाता अपितु इस लिये हि क्या यह सब सत्य है ? आया है । उसकी उत्पत्ति, गति और कृति यदि सत्य है तो इसमें कल्पना का आश्रय भी उसकी स्तुति से हम समझ पाते हैं। क्यों लिया गया ? यह इस लिये भी आववह नीरव-निशीथ में अपनी कमनीय किरणों श्यक हो गया कि वास्तविकता से कोशों दूर का कोमल सार्थ देकर पेड पाँवों को परि रहकर विज्ञानवादी ऐसे कल्पित सत्यों का पक्व करता है, इसलिये उसे 'औषधीश" जाल अब तक फेलाकर अपना अस्तित्व जमाते कहा जाता है। उसमें छिपा काला चिन्ह आये हैं। उसको 'शशलांछन' कहने में सहयोगी बनता विज्ञान का शास्त्रीय अर्थ है शिल्प और है। वह अपनी कलाओं के संकोच विकास के शास्त्र । शिल्प का आश्रय भौतिक सम्पदाओं कारण क्षयी भी और पूर्ण होने पर अपार की अभिवृद्धि करता है और शास्त्र का आश्रय पारावार की लहरियों में. उभार लाता है, आध्यात्मिक सम्पदाओं की । पाश्चात्य वैज्ञाइस लिये वह समुद्र का बेटा भी माना निक शिल्प के सहारे भौतिक-सम्पत्ति में गया है।
आगे बढ़ते रहे । भारतीय-महर्षि-वर्ग शास्त्र श्रद्धा और विश्वास की बाहों में सिमटा का परिश्रम कर आध्यात्मिक लक्ष्य की परिपूर्ति हुआ यह संसार धर्म और शास्त्र के सहारे करने में बहुत लगा रहा । किन्तु इसका यह
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