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म. की सिंहगर्जना है कि- तत्त्वज्ञान का स्थान भांति एपोलो-११ की बाते इन दिनों यत्र विज्ञान की अपेक्षा कई दृष्टियों से ऊंचा और तत्र चर्चा का विषय बनी हुई है । महत्त्वपूर्ण है । इस सम्बन्ध में वे एक समी भौतिकवाद के धरातल पर खड़े विज्ञान करण प्रस्तुत करते है।
ने यन्त्र विद्या की निपुणता को पराकाष्टा के "तत्त्वज्ञान आँख है, विज्ञान काँच है। कारण एपोलो ११ की सफलता के माध्यम तत्त्वज्ञान प्राण है, विज्ञान शरीर है। से कुछ भौतिक सिद्धियां प्राप्त कर ली है; तत्त्वज्ञान आँख है, विज्ञान हाथपैर है। इस विषय में निषेध नहीं किया जा सकता,
किन्तु इतने मात्र से ही विज्ञानने अतीन्द्रिय तत्वज्ञान दाया पाव है, आर विज्ञान पदार्थो को भी उत्कृष्ट भौतिक सामग्री के बांया पांव है ।
बह पर जान लिया है, ऐसा तो नहीं कहा। अतः विज्ञान का एक अंग है। जा सकता । तत्वज्ञान सर्वागीण और विज्ञान एकांगी है।
इस दृष्टि से एपोलो ११ पृथ्वी से लगभग फिर भी प्रचार-प्रसार बहुमुखी प्रस्थापना
। ढाई लाख मील दूर जा कर किसी ज्ञात प्रदेश
की और प्रयोग-परीक्षण आदि के आवरण से
___ में उतरा र
हो, उसे चन्द्र पर उतरा हुआ वह सत्यवत् आभासित होता रहता है ।" मान लेनेकी जल्दी उचित नही है। क्योंकि
इस लिये सत्य से दूर भटकते हुए विज्ञान स्वयं इस विषयक कुछ कड़ियोंको मानव को सत्य के निकट लाकर उसका आजतक हठाने में सफल नहीं हुआ है, तथा दर्शन कराना ही मुनिजीवनकी सार्थकता है, कुछ अनहोनी धारणाओ के कारण विज्ञान की इसी बात को ध्यान में रखकर-पू. पं. श्री मूलभूत धारणाएं भी डिगने लगी है । ऐसी अभयसागरजी म० ने अपने मनन योग्य स्थिति में विज्ञान स्वयं प्रयोगों के माध्यम से विचार जनता के सम्मुख प्रस्तुत किये । जबतक पर्याप्त परीक्षण न कर ले और अन्तिम उनके द्वारा चन्द्रयात्रा का रहस्य मदन भी परिणाम प्रकट न करे तब तक प्रेस प्लेटलोकप्रिय बन गया है। एपोलोयान की फोर्म के आधार पर किये गये प्रचारों को चन्द्रयात्रा. का रहस्य विषय पर पूज्य मुनिराज अधिक महत्व देकर उत्पन्न की गई धारणाओं के विचारों को ही यहां प्रस्तुत किया जा की जाल में फसना उचित नही है । रहा है । यथा
एपोलोयान-११ चन्द्रमा पर नहीं पहुंचा "वर्तमान समाचार-पत्रों के आधार पर है, इस कथन की पुष्टिके लिये निम्नांकित ऐसा प्रतीत होता है कि विज्ञान ने कोई तर्क प्रस्तुत किये हैं। अद्भुत सिद्धि प्राप्त कर ली हो, और मानव (१) वैज्ञानिको के अनुसार एपोलो सेटर्न लोक से चन्द्रलोक पर अपने चरण बढ़ा दिये रोकेट के धवके से उपर १९० मील पहुंच हो, वैज्ञानिक सिद्धि के उत्कृष्ट नमूने की कर पृथ्वी की दो प्रदक्षिणा करने के बाद
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