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चीज़े लेकर खुशबू के पियर गए। वहाँ से दोनों सीधे शॉपिंग करने गये। ढेर सारी शॉपिंग कर शाम को दोनों घर पर आये। घंटी बजने पर सुषमा ने खुद दरवाज़ा खोला) सुषमा : इतना सब क्या लेकर आए हो? खुशबू : आते समय शो-रुम में अच्छी साड़ियाँ दिखी तो दो-चार खरीद ली। सुषमा : पर खुशबू, अंभी शादी हुए छः महिनें भी नहीं हुए और अभी से शॉपिंग शुरु हो गई। प्रिन्स : क्या मॉम तुम भी? इसके पास ढंग की कोई साड़ी नहीं थी। इसलिए मैंने ही दिलवाई है। सुषमा : पर बेटा ! अभी शादी के मौके पर ही मैंने इसे इतनी सारी साड़ियाँ दी थी। प्रिन्स : मॉम, वे सब पुरानी हो गई है। फेशन के हिसाब से चलना पड़ता है। (अपने बेटे को भी अपने खिलाफ सुनकर सुषमा को गुस्सा आ गया) सुषमा : अपने घर से तो एक फूटी कोड़ी भी लेकर नहीं आई और यहाँ आते ही पैसे उड़ाने शुरु कर दिए। पैसे क्या पेड़ पर लगते हैं ? खुशबू : मम्मीजी ! मेरे पियर को बीच में लाने की कोई जरुरत नहीं है। आपसे तो पैसे नहीं माँगे ना। मेरा पति कमाता है और मैं खर्च करती हूँ। जिस दिन ये कमाना बंद कर देंगे। मैं आपके पास फूटी कोड़ी भी नहीं माँगूगी।
सुषमा ने सोचा था कि खुशबू के ऐसे जवाब पर प्रिन्स जरुर उसे डाँटेगा। परंतु प्रिन्स बिना कुछ बोले खुशबू के साथ अपने कमरे में चला गया। यह देखकर सुषमा को गहरा झटका लगा। उसे अपना बेटा अपने हाथों से जाता नज़र आया, और दूसरे दिन तो घर में तहलका मच गया। हुआ यूँ कि प्रिन्स
और खुशबू दोनों दूसरे दिन फिर खुशबू के पियर गये तथा वहीं से दोनों घूमने चले गए। शौक से खुशबू पियर से जिन्स पहनकर गई। संयोगवश सुषमा अपनी कुछ सहेलियों के साथ उसी स्थान पर आई और उसने खुशबू को देख लिया। घूम-फिरकर खुशबू वापस पियर जाकर कपड़े बदलकर ससुराल आई। खुशबू के आते हीसुषमा : खुशबू ! घर की मर्यादा का ख्याल भी है या नहीं? प्रिन्स : क्यों मॉम ! आज फिर क्या हो गया? सुषमा : शादी के बाद ऐसे कपड़े पहनकर बाहर जाना हमारी खानदानी मर्यादाओं के खिलाफ है। खुशबू : मर्यादा ! किस मर्यादा की बात कर रही है आप? आपको यह खानदानी मर्यादा उस वक्त याद नहीं आई जब आपकी बेटी डॉली घर से भागकर गई थी? यदि उसे भी मेरी तरह मर्यादा सिखाई होती तो आज आपको यह दिन देखना नहीं पड़ता।