Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 199
________________ मेनेजर : ओ.के. सर। (विधि को जैसे ही मेसेज मिला उसने तुरंत ही दक्ष के मोबाईल पर कॉल किया। पर फोन उठाने वाला कोई नहीं था। गुस्से में विधि घर आकर खाना बनाए बिना ही सो गई। दक्ष मिटिंग के बाद अपनी माँ से मिलकर घर आया और आते ही।) दक्ष : मुझे माफ करना विधि। अचानक एक जरुरी मिटिंग होने के कारण मैं नहीं आ सका। चलो अभी जल्दी खाना लगा दो बहुत जोरों की भूख लगी हैं। विधि : (गुस्से में) आपको यदि आना ही नहीं था तो पहले ही कह देते, मैं अपनी किटी पार्टी तो केन्सल नहीं करती (थका हुआ दक्ष भी यह सुनकर गुस्सा हो गया) दक्ष : कम ऑन विधि। सॉरी कह रहा हूँ ना। अचानक जरुरी मिटिंग आ गई तो नहीं आ सका, थोड़ा समझा करो, तुम मेरी प्राब्लम नहीं समझोगी तो और कौन समझेगा? विधि : अचानक मिटिंग आ गई तो केन्सल भी तो कर सकते थे। आपकी मिटिंग जरुरी है और मेरी किटी पार्टी की कोई किमत नहीं। आपके पीछे मैं पागलों की तरह वहाँ केन्टीन में बैठी रही। पता है लोग मुझे कैसे घर-घूरकर देख रहे थे। दक्ष : विधि ! मैंने मेसेज तो भिजवाया ही था ना। थोड़ी देर बैठ गई तो क्या हो गया। छोटी सी बात को बड़ा करने की आदत पड़ गई है तुम्हारी। इसलिए मम्मी पापा भी चले गए। विधि : हाँ-हाँ सारी बुरी आदतें तो मुझमें ही है, मुझसे ही गलती हो गई जो मैंने आपके पीछे अपनी इतनी जरुरी पार्टी केन्सल कर दी। पर आपको तो सिर्फ आपके प्रेस्टीज की ही पड़ी है। मेरे लिए एक मिटिंग नहीं छोड़ सकते थे आप? दक्ष : विधि ! तुम कुछ ज्यादा ही बोल रही हो। मिटिंग, मिटिंग होती है और पार्टी, पार्टी। तुम मेरी मिटिंग को अपनी फालतु पार्टी से तुलना मत करो। विधि : मेरी पार्टी को फालतु कहनेवाले तुम कौन होते हो? ज्यादा मैं नहीं तुम बोल रहे हो। वो तो मैं हूँ जो तुम्हारे स्वभाव को लेकर अब तक चल रही हूँ। मेरे ऊपर की आई होती तो पता चल जाता। दक्ष : हाँ ठीक ही कह रही हो तुम। तुम से अच्छा तो मैंने किसी गँवार से शादी की होती तो ज्यादा कुछ नहीं पर अच्छे से तो रहती और दो वक्त का खाना तो नसीब होता। इस प्रकार भूखा तो नहीं रहना पड़ता। (इतना कहते ही दक्ष रुम से तकिया लेकर बाहर भूखा ही सो गया। विधि भी गुस्से में आकर रुम में सो गई। इस प्रसंग के बाद विधि और दक्ष के बीच में चार दिनों तक कोई बातचीत नहीं

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