Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 218
________________ कर्म का उदय जीव को विग्रहगति में मोड़ लेने में सहायक बनता है। .खाने से पुष्कल विकलेन्द्रिय जीवों की हिंसा होती है। 5. स्त्रियों में . .............. और प्रेम सहज रुप से होता है। 6. प्रभु का जन्म होते ही पहले ..................... का आसन चलायमान होता है। 7. परमात्मा की कृपा से ही ... ..... दशा प्राप्त होती है। 8. द्वादशावर्त वंदन से ...... को वंदन किया जाता है। 9. सदाचंद शेठ ने सोमचंद शेठ के वहाँ आनेवाले को . । आनवाल का ................ ...... रुपये देने को कहा। 10. वारंवार स्वाध्याय करने से .................. की लब्धि प्राप्त होती है। 11. अहंकार जागृत होता है तब ..................... की भावना का नाश होता है। 12. शुरुआत में वात्सल्यनिधि बनकर...........................से पुत्रवधू का निर्माण करना चाहिए। प्र. मुझे पहचानो। (Who am I) : 12 Marks 1. मुझ में बहुत छोटी केसरी रंग की इयल होती है। 2. मैंने मेरे लाडले पुत्र को आपको सौंप दिया। 3. शाम को सूर्यास्त से 48 मिनट तक मैं रहता हूँ। 4. मुझे सुबह चबा-चबा कर खाने से शरीर बलवान बनता है। 5. मैं और वासुदेव एक साथ एक क्षेत्र में नहीं रह सकते। 6. मैंने सबको पार्टी केन्सल करने के समाचार दिए। 7. उपसर्ग टले नहीं तब तक मैंने चारों आहार का त्याग किया। 8. मेरी उत्पत्ति घर में ज्यादा समय गीली रहने वाली जगहों पर होती है। 9. मेरे पिता के क्रोध ने मुझे भी क्रोधी बना दिया। 10. मैं मेले में गुम हो गई। 11. मेरे द्वारा जीव पापों से मुक्त हो सकते हैं। 12. मेरे हाथों की मेहंदी का रंग उडने से पहले ही मुझ पर कर्तव्य का बोझ डाल दिया गया।

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