Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

View full book text
Previous | Next

Page 230
________________ स्नान करने से पहले प्रभु को प्रार्थना हे प्रभु ! भले मैं स्नान करूँ लेकिन अस्नान रुप साधुता ही सत्य है उसकी मुझे कभी विस्मृति न हो | मेरे स्नान में अप्कायादि जिन जीवों की विराधना हुई हो उनकी क्षमा माँगता हूँ | उन जीवों का शीघ्र मोक्ष हो / कम से कम पानी से आवश्यकता पूर्ति रुप ही स्नान करूँ | साफ एवं सुंदर दिखने का मेरे देहाध्यास का विराम हो / देह की यह द्रव्य शुद्धि मुझे निरंतर आत्मशुद्धि का लक्ष्य करवाकर क्षपकश्रेणी का प्रारंभ करवाकर मेरे सर्व कर्ममल का क्षय करवाकर मुझे सिद्ध स्वरुप की प्राप्ति कराएँ और उसके लिए "सिद्ध स्वरुपी अंग पखाली, आतम निर्मल होय सुकुमाली" यानि कि सिद्ध स्वरुपी प्रभु का पक्षाल करके मैं मेरी वास्तविक शुद्धि करूँ। ___ प्यारे प्रभु ! भले रोज में नये-नये वस्त्र पहनूं लेकिन प्रभु का दिया हुआ श्रमणसुंदर वेष ही सत्य है / उसकी मुझे कभी भी विस्मृति न हो / मेरे वस्त्र बनाने में जिन-जिन जीवों की विराधना हुई हो उनकी क्षमा माँगता हूँ | मेरी वेषभूषा देखने के निमित्त से जिन जीवों ने अशुभ कर्म बांधे हो उनसे क्षमा माँगता हूँ | सुंदर दिखाने का मेरे देहाध्यास का अहंकार और पुद्गल के आसक्ति भाव का विराम हो / शीघ्रातिशीघ्र मुझे श्रमण सुंदर वेष मिले, जो क्षपक श्रेणी का प्रारंभ करवाकर मेरे अरुपी सिद्धस्वरुप की मुझे प्राप्ति कराएँ / नमो चारित्तस्स !!! Vn डीझाईन जैनम् ग्राफोक्स अहमदाबाद, फोन 25627469, 98258 51730

Loading...

Page Navigation
1 ... 228 229 230