Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 203
________________ बालक जब इतना विकास कर सकता है तो तुम्हारी कुक्षी में तो एक महिने का बच्चा है। अपने जैन शासन में तो एकेन्द्रिय जीव की हत्या में भी पाप बताया है। तो एक पंचेन्द्रिय जीव उसमें भी एक छोटे से बच्चे की हिंसा में कितना पाप होगा? वो भी एक माँ होकर तुम स्वयं कैसे यह कार्य करा सकती हो। जरा सोचो विधि। विधि : पर भाभी.... मोक्षा : पर क्या विधि ? तुम जानती हो गर्भपात केन्द्र में कितने नृशंस उपाय से गर्भ में रहे हुए बालक को बाहर निकाल कर फेंक दिया जाता है। विधि : कैसे उपाय भाभी? मोक्षा : विधि ! एबोर्शन के चार प्रकार होते है। सबसे | पहली पद्धति है डी.एन.सी ओपरेशन - डॉक्टरी साधनों के द्वारा सगर्भा स्त्री के गर्भाशय का मुख चौड़ा किया | जाता है। फिर चाकू अथवा कैंची जैसे हथियार को | अन्दर डालकर जीवित बालक को बींध दिया जाता है। गर्भ में तड़पता हुआ बालक रक्त रंजित होकर असह्य वेदना से अपने प्राण छोड़ देता हैं। फिर चम्मच जैसे साधन से बालक के टुकडे-टुकडे बाहर निकाले जाते हैं। शान्त बना हुआ मस्तिष्क, रक्तरंजित बनी आँते, बाहर गिरी हुई आँखें, अभी तक दुनिया में जिसने पहला श्वास भी नहीं लिया है ऐसे फेंफड़े, छोटा सा हृदय, हाथ तथा पैर आदि अवयवों को बाहर निकालकर जल्दी से बाल्टी में फेंक दिया जाता है। विधि ! दूसरी होती है शोषण पद्धति, जिसमें गर्भाशय में एक चौड़ी नली का अग्रभाग घुसाया जाता है। उस नली के साथ एक पम्प जुड़ा होता है। नली के दूसरे भाग से एक बड़ी बोतल जुड़ी होती है। नली के अग्रभाग को गर्भाशय में व्यवस्थित करने के बाद पम्प को चालु करने से गर्भ में रहा बालक पेट में टकराता है। टकराव से उसे गहरी चोट पहुँचती है और बालक के कोमल अंग के टुकड़े-टुकड़े होकर बाहर आ जाते है। और यदि कोई जीव अत्यंत बलिष्ठ हो तो वह पूरा का पूरा जीवित बाहर आ जाता है तब उसे बाल्टी SPEE

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