Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 211
________________ से तुम्हारा जीवन बाग महक उठेगा। मैं तुम्हें एक दृष्टांत सुनाती हूँ। जिससे मेरी बातें तुम्हारे दिमाग में एकदम फिट हो जायेगी। एक रबाड़ी अपनी पत्नी के साथ बैलगाड़ी में घी बेचने गया । निश्चित स्थान पर पहुँच कर रबाइन घी के मटके रबाड़ी को दे रही थी और रबाड़ी उसे नीचे रख रहा था। एकाएक घी का एक मटका गिर गया और पूरा घी नीचे गिर गया। यह देखते ही रबाड़ी आग-बबूला होकर बोला “जरुर किसी युवक को देख रही होगी जिससे मटका पकडने से पहले ही छोड दिया ।" तब उसकी पत्नी भी गुस्से में बोली “तुम्हारी नजर भी किसी युवती पर ही होगी, जिससे तुमने घड़ा व्यवस्थित नहीं पकड़ा।" बात बढ़ गई और झगड़ा करतेकरते कब शाम हुई पता ही नहीं चला। इस झगड़े में गिरा हुआ घी कुत्ते चाट गए और बाकि रहे घी के घड़े भी दोनों बेचना भूल गए। सभी रबाड़ी घी बेचकर चले गए थे मात्र वे दोनों शाम तक आपस में झगड़ रहे थे। जब उन्हें शाम होने का एहसास हुआ तब घी बेचे बिना ही दोनों दम्पति अपने गाँव जाने लगे। तब अंधेरे में चोरों ने बचा हुआ घी भी चुरा लिया। ऐसा ही किस्सा दूसरे एक रबाड़ी युगल के साथ हुआ। घी के नीचे गिरते ही पत्नी बोली “अरे माफ कीजियेगा। आपके मटका पकड़ने से पहले ही मैंने मटका छोड़ दिया।" इस पर पति भी बोला - "नहींनहीं तुमने तो बराबर ही दिया था मैंने ही ध्यान से नहीं पकड़ा।" दोनों ने हो सके उतना नीचे गिरा हुआ घी ले लिया। घी के अन्य मटके भी बेचकर खुशी-खुशी घर चले गए। बस ऐसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जो दम्पति आपस में एक दूसरों की भूल देखते है वे आवेश में आकर आपस में झगड़ते है। इसके बदले दम्पति आपस में अपनी भूल स्वीकार कर लें तो उस घर का वातावरण कैसा होगा यह बताने की जरुरत नहीं है। शायद अब तुम मेरे कहने का आशय समझ गई होगी। विधि : तो फिर इसका मतलब यही हुआ कि दक्ष चाहे कितनी भी गलती करें। कैसी भी गलती करें मुझे नज़र अंदाज ही करते रहना, उनकी गलतियों पर ध्यान नहीं देना। भाभी ! सास - बहू के संबंधों में दरारें हो तो बहू को ही सुधरना चाहिए क्योंकि वह कच्चे घड़े की तरह होती है यह बात तो फिर भी उचित है। परंतु जहाँ पति-पत्नी जिनकी वय समान होती है, एक दूसरे को समझने की शक्ति होती है वहाँ यदि पति को खुश रखने के कुछ कर्तव्य मेरे है तो क्या मुझे खुश रखने के लिए दक्ष के कोई कर्तव्य नहीं हैं? उन्हे सुधरने की कोई आवश्यकता नहीं ? मोक्षा : विधि ! दक्ष का स्वभाव सुधरना चाहिए, मन से इन गलत विचारों को हमेशा के लिए दफना दो और मन में इस बात को आत्मसात् कर लो कि दक्ष के स्वभाव को मुझे नम्रता से स्वीकार कर लेना है। तुम यह तो जानती ही होगी कि हर गाँव में समाज व्यवस्था को अच्छे ढंग से चलाने के लिए गाँव में मंदिर के साथ एक श्मशान की आवश्यकता भी होती है। ठीक वैसे ही अपने जीवन को अच्छे ढंग से चलाने 175

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