Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 205
________________ मोक्षा : क्या तलाक? यह क्या कह रही हो। जरा सोचकर बोलो। विधि : हाँ भाभी ! मैं दक्ष से तलाक लेना चाहती हूँ। यह मेरा आखरी फैसला है। मैंने अपने भविष्य के बारे में भी सोच लिया है। मैं किसी पर बोझ बनकर नहीं जीना चाहती। मैं एक फैशन डिज़ाईनर हूँ। यदि मैं चाहूँ तो मुझे अच्छी नौकरी भी मिल सकती है। इस प्रकार अपने पैरों पर खडी होकर मैं अपना पेट तो भर सकती हूँ। लेकिन प्रश्न आता है इस बच्चे का। मोक्षा : विधि ! यहाँ किसी पर बोझ बनने या पेट भरने का सवाल नहीं है। यहाँ सवाल तुम्हारी और दक्ष की जिंदगी का और तुम्हारे बच्चे का हैं। पहले दिमाग को थोड़ा ठंडा करो और बताओ कि क्या हुआ? विधि : भाभी ! दक्ष के झगड़ालु स्वभाव के कारण मैं उनसे इतनी परेशान हो गई हूँ कि कई बार मन में ऐसे विचार आते है कि या तो आत्महत्या कर अपना जीवन समाप्त कर दूं या दक्ष से तलाक लेकर उनसे हमेशा के लिए अलग हो जाऊँ मोक्षा : विधि ! सबसे बड़ी गलती तो तुमने अपने सास-ससुर से अलग होकर की है। किस कारण वश तुमने यह सब किया और अलग होने के लिए तुमने अपने सास ससुर के साथ कैसा बर्ताव किया उसकी सारी जानकारी दक्ष ने मुझे दे दी है। तुम दक्ष को गलत मत समझना, उसने तो तुम्हारी भलाई के लिए ही यह सब कहा है। विधि उस दिन फोन पर दक्ष का आखरी वाक्य मुझे अभी भी याद है उसने कहा था कि “मोक्षा दीदी मैं विधि से बहुत प्यार करता हूँ और उसकी भलाई के लिए मैं उसे गलत रास्ते पर जाने से रोकना चाहता हूँ प्लीज़ मोक्षा दीदी मेरी मदद करो।” विधि : भाभी ! मैं स्वीकार करती हूँ कि मैंने जो किया वह गलत किया। पर आप ही बताइए मैं क्या करती। आज के जमाने में किसी को भी संयुक्त परिवार में रहना पसंद नहीं आता। मुझे भी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ। मेरे सास-ससुर की दखलअंदाजी के कारण मैं तंग आ गई थी। वे घर पर हो तो मैं कही भी स्वतंत्रता से घूम फिर नहीं सकती थी। अपने सहेलियों के साथ किटी-पार्टी में या शॉपिंग करने कहीं भी नहीं जा सकती थी। मुझे उनकी उपस्थिति बहुत खटकती थी। इसलिए मैंने उनसे अलग होने का निर्णय लिया और अलग होने के लिए मुझे जो लगा वह मैंने किया। मोक्षा : विधि ! यही तो तुम्हारी सोच गलत है। तुमने उस घर में बेटी बनकर अपनी मनमानी करनी चाही। यह बात सही है कि बहु को ससुराल में बेटी बनकर रहना चाहिए। तुमने बेटी बनकर बेटी के अधिकारों को स्वीकार कर लिया। पर माता-पिता की सेवा रुप बेटी के कर्तव्यों को तुमने स्वीकार नहीं किया। सुनो मेरी ही सहेली निर्मला की बात मैं तुम्हें बताती हूँ। निर्मला की शादी के दिन उसके ससुरजी की तबियत खराब हो गई। रात को निर्मला के पति निखिल की इच्छा अपने पिता के साथ सोने की थी पर उसे डर था कि कही निर्मला का दिल टूट न जाये। इतने में निखिल के मन की परिस्थिति

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