Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 120
________________ बाहर आया तब उसको बुलाकर घर पर भोजन के लिए आमंत्रण दिया। सेठ के आमंत्रण को सुनकर वह चोर काँप उठा। परंतु उसके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था। इसलिए वह सेठ के साथ उनके घर चला गया। वहाँ खाना खाते समय सेठ ने उन्हें चोरी करने का कारण पूछा। डरते-डरते उस श्रावक ने बताया कि वह जुएँ में अस्सी हज़ार रुपये हार गया है। इसलिए उसकी भरपाई के लिए उसने यह चोरी की। सेठ ने उसी समय एक लाख रुपये नकद साधर्मिक भाई को पहेरामणी के रुप में भेंट किए। वह श्रावक रोने लगा। तब सेठ ने कहा “भाई ! रो मत, तुमने तो मुझे साधर्मिक भक्ति का लाभ दिया है। तुम तो मेरे उपकारी हो।" ऐसी होनी चाहिए जीवन में साधर्मिक भक्ति। श्री 8. साधर्मिक भक्ति से मिले उदयनमंत्री, कुमारपाल तथा हेमचन्द्राचार्य र परमात्मा महावीर स्वामी के परमभक्त श्रेणिक महाराजा भी अपने राज्य में जितनी जीवदया का पालन नहीं करा सकें उससे भी कई गुणा अधिक जीवदया का पालन कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने महाराजा कुमारपाल के द्वारा करवाई। ऐसे सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य हमें मिले इसके पीछे उदयन मंत्री की विचक्षणता तथा शासन स्नेह था। परंतु यह उदयन मंत्री हमें मिले इसके मूल में हसुमति बहन के हृदय में रही हुई साधर्मिक भक्ति ही थी। . उदा नामक एक वणिक निर्धन बन गया था। गरीबी से लड़ते हुए उसने घर छोड़कर दूसरे नगर में व्यापार करने का विचार किया। अपनी पत्नी तथा बच्चों को साथ लेकर तीन दिन तक भूखे-प्यासे चलते हुए वह एक नगर में पहुँचा। पर अब जाएँ कहाँ ? ना कोई रिश्तेदार है और ना ही किसी के साथ जान-पहचान। दुःखी तथा पापी जीवों के लिए इस विश्व में यदि किसी का सहारा है तो भगवान का। उदा भी अपने परविार को लेकर प्रभु के मंदिर में पहुँच गया। दर्शनादि कर प्रभु की स्तवना करने लगा। पति-पत्नी दोनों प्रभु भक्ति में इतने लयलीन बन गए कि अपनी सारी तकलीफें भूल गए। चीथड़े हाल में बैठे हुए भक्ति में लीन ऐसे कुटुंब पर उसी नगर की श्रीमंत विधवा श्राविका हसुमती बहन की नज़र पड़ी। - उसने उदा की परिस्थिति को भाँप लिया। जब उदा कुटुंब सहित मंदिर से बाहर निकला तब हसमति उसके पास गई एवं उन्हें भोजन का आमंत्रण देकर सबको घर ले आई। सत्कारपूर्वक उस कुटुंब की साधर्मिक भक्ति कर उनको पहेरामणी दी। हसुमति बहन ने पूछा ? “भाई ! निसंकोच होकर मुझे

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