Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 121
________________ बताओ कि आप लोग इस नगर में कहाँ रहेंगे और क्या करोगे ?” उदा ने जवाब दिया- “फिलहाल मेरे हाथ में थोड़ी रकम है। मैं वणिक पुत्र हूँ । अतः अब क्या धंधा करना और कैसे धन कमाना इसकी बुद्धि मेरे पास है। अब सवाल मात्र रहने का है। भगवान की कृपा से रहने के लिए छत मिल जाये तो अच्छा होगा।” तब हसुमति ने अपना एक छोटा-सा घर उसे रहने के लिए दे दिया। तब उदा ने आग्रह करके घर का किराया निश्चित किया । उदा के भाग्य ने साथ दिया एवं व्यापार द्वारा उसने अच्छा धन कमाया। कुछ दिनों बाद उसने हसुमति से घर खरीदने की बात की। हसुमति के लिए तो साधर्मिक भक्ति का सुनहरा अवसर था। इसलिए उसने कम दाम में उदा को घर बेच दिया। दूसरे दिन उदा ने घर का नव निर्माण करने हेतु घर को तुड़वाना शुरु करवाया। खोदते समय एक सोने का चरु बाहर निकला । चरु लेकर उदा हसुमति के घर गया और चरु हसुमति को सौंपने लगा । परंतु हसुमति ने लेने से इन्कार कर दिया। उसने कहा कि “मैंने घर बेंच दिया है। अब इस घर पर तथा चरु दोनों पर मेरी मालिकी नहीं है। जो यह मेरे किस्मत में होता तो वर्षों से यह घर मेरे पास था तो मुझे पहले ही मिल जाता। लेकिन आपके घर खरीदने के बाद यह बाहर निकला है। अतः यह आपका ही है।" परन्तु उदा को हराम का माल लेना कतई पसंद नहीं था। उसने सिद्धराज जयसिंह राजा के दरबार में जाकर शिकायत की। राजा ने दोनों पक्षों की बात सुनकर चरु का मालिक उदा को बताया। यह न्याय सुनकर हसुमति बहुत ही आनंदित हुई । परन्तु उदा को वह चरु “हराम का माल” लगने से उसने उस धन से जिनमंदिर बनवाने का निर्णय किया। और दूसरे दिन से. ही शिखरबंधी जिनालय बनवाने का कार्य शुरु हो गया । चरु की सारी संपत्ति जिनालय में लगा दी। जब सिद्धराज जयसिंह को इस बात का पता चला तो उसने उदा की उदारता से प्रभावित होकर उदा को मंत्री पद पर नियुक्त किया । उदा उदायन मंत्री बन गया। वह जिन का भक्त, गुरु का दास, साधर्मिक का प्रेमी और जिन धर्म का वफादार सेवक बना। उसी समय में पूज्यपाद देवचन्द्रसूरिजी महाराजा, उस समय के सनातन धर्मियों की ओर से जैन धर्म पर आ रहे आक्षेपों एवं आक्रमण से व्यथित थे। एक रात शासन देवी ने स्वप्न में आकर कहा कि “धंधुका में चाचिंग नामक अजैन वणिक एवं पाहिनी नाम की एक जैन माता के पुत्र चांगा को जैन दीक्षा देने की प्रेरणा करो। आपकी सब मनोव्यथा का अंत यह चांगा करेगा।" इस स्वप्न के अनुसार सूरिजी 93

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