Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 185
________________ मि. जॉन : तो कल ठीक आठ बजे आ जाना। (डॉली वहाँ से चली गई। 10,000 की सेलेरी सुनते ही डॉली बहुत खुश हो गई। उसने सारी बात समीर को बताई। यह सुनकर समीर भी बहुत खुश हो गया। दूसरे दिन, पहली बार ऑफिस में कदम रखने के कारण डॉली बहुत खुश थी। ऑफिस के सारे लोगों ने उसका स्वागत किया । मि. जॉन ने डॉली से सबका परिचय करवाकर ऑफिस का सारा काम उसे समझाया। डॉली को एक पर्सनल केबिन दे दिया गया। ऑफिस के लोगों का अच्छा बर्ताव देखकर डॉली का मन ऑफिस में लग गया। इस तरह डॉली का पहला दिन बहुत अच्छा गया। धीरे-धीरे डॉली ऑफिस के काम में इतनी व्यस्त हो गई कि वह अपने भूतकाल के दुःख भरे जीवन को भूलने लगी । ( एक महिना पूरा होते ही समीर डॉली के पास से उसकी सेलेरी ले लेता था। एक बार - ) डॉली : समीर ! मुझे कुछ रुपये चाहिए । समीर : अभी 6 दिन पहले ही तो तुम्हें 300 रु. दिए थे उसका क्या किया ? डॉली : समीर ! क्या तुम मुझसे एक-एक पैसे का हिसाब माँगोगे ? समीर : हाँ, और तुम्हें देना भी होगा । डॉली : ऑफिस इतनी दूर है आने-जाने के लिए टेक्सी का खर्चा होता है और तुम्हें पता ही है आजकल महँगाई कितनी बढ़ गई है। समीर : वही तो तुम्हें बताना चाहता हूँ कि आजकल महँगाई बढ़ गई है इसलिए अपने खर्चें कम करो। आने जाने के लिए टेक्सी की क्या जरुरत है, बस भी तो चलती है। तुम्हारा काम भी हो जायेगा और पैसे भी बच जायेंगे । डॉली : पर समीर ! शाम को ऑफिस से आने में लेट हो जाता है और तब बस में आना रिस्की होता है। समीर : यह सब तुम्हारी गलतफहमी है, कुछ नहीं होता, सभी नौकरी करनेवाले जाते ही तो है। तुम कौन सी स्पेश्यल हो ? डॉली : लेकिन समीर ये 10,000 रु. जाते कहाँ है ? समीर : जबान मत चलाओ, 10,000 रुपये कहाँ जाते है मैं तुम्हें यह बताना जरुरी नहीं समझता। ( यह सुनकर डॉली को गुस्सा आ गया । ) डॉली : मुझे भी तो पता चलना चाहिए कि कहीं मेरी मेहनत की कमाई शराब के अड्डों पर तो नहीं उड़ाई जा रही ? समीर : वाह ! थोड़े पैसे क्या कमा लिए आसमान में उड़ने लगी हो । उसे मेहनत की कमाई 149

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