Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 196
________________ दक्ष : नही माँ ! मैं आपको इस घर से अलग नहीं होने दूंगा। अलग होना है तो विधि होगी। वह इस घर में नई आई है। सुधीर : ऐसा होता होगा बेटा ! तू आराम से उसके साथ रहकर अपना जीवन बीता। वैसे भी हम ज्यादा दूर थोड़े ही जा रहे हैं। इस शहर में ही तो है। आते जाते रहेंगे। बेटा इससे तुम भी खुश रहोंगे और हम भी। (पिताजी की बात सुनकर दक्ष नहीं माना। तब माता-पिता ने उसे बहुत समझाया और साथ ही यहाँ रहने से भविष्य में आने वाले दुःखद परिणामों से अवगत कराया तब-) दक्ष : मम्मी-पापा ! यदि आपकी यही इच्छा है, तो मेरी भी एक शर्त है। सुधीर : कैसी शर्त बेटा? दक्ष : आप लोग अलग ही रहना चाहते हो तो ठीक है लेकिन मैं आपको दूर नहीं भेज सकता। इसलिए आप लोग घर के पीछे वाले कॉटेज में ही रहो। मैं आपके रहने का सारा इंतज़ाम कर दूंगा। सुधीर : ठीक है बेटा जैसी तेरी इच्छा। (अपने माता-पिता को थोड़ी भी तकलीफ न हो इस प्रकार दक्ष ने उस कॉटेज में सारी व्यवस्था कर दी। उसके माता-पिता को जैसी सुख और शांति विधि के साथ रहते हुए नहीं मिली उससे कई गुणा अच्छी सुविधा दक्ष ने अपने माता-पिता के लिए कॉटेज में कर दी। विधि के बाज़ार से आते ही दक्ष ने विधि को यह समाचार दिये कि मम्मी-पापा अब अलग होने जा रहे है। तब विधि की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। आखिर उसे जो स्वतंत्रता चाहिए थी वह उसे मिल ही गई। . __ आजकल के वातावरण को देखे तो बहुएँ ससुराल आने के बाद अपनी सासुमाँ में सदैव सासु का ही रुप देखती है, कभी माँ के दर्शन नहीं करती। इसी कारण से वे इतनी निर्दयी बनकर उनके एक मात्र आधार उनके पुत्र को उनसे अलग करने में जरा भी नहीं हिचकिचाती। घर में आनेवाली बह के लिए, पति के बाद कोई सबसे ज्यादा नज़दीक हो जिसे वह अपनी बात बता सके तो वह होती है सासु। पति तो सुबह ही ऑफिस या दुकान चले जाते है। तब एक सासु ही है जो उसके साथ रहती है। लेकिन विधि ने अपने गलत व्यवहार द्वारा अपने देवता तुल्य सास-ससुर का सहारा खो दिया था। ___ इस तरफ शुभ दिन देखकर सुधीर और शारदा उस घर से अलग हो गए। दक्ष ऑफिस जाने के पहले और ऑफिस से आने के बाद सबसे पहले अपने माता-पिता से मिलने जाता। उन्हें किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ न हो उसका वह पूरा ध्यान रखता था। अपने मम्मी पापा के लिए वह 160

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