Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 183
________________ (इतना कहकर सुषमा की आँखों में आँसू आ गए, डॉली भी रोने लगी।) सुषमा : डॉली ! तुम्हारे पापा ने अपनी कसम डाली है इसलिए तुम अब कभी उस घर पर फोन मत करना। तुम्हारे पापा ही मेरा एक मात्र सहारा है यदि उन्हें कुछ हो गया तो मैं क्या करूँगी? (इतना कहकर सुषमा ने कुछ पैसे डॉली को दिए और वापस अपने घर लौट आई। सुषमा के जाने के बाद डॉली को अकेलापन महसूस होने लगा। जीवन में पहली बार उसे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था। उसने विचार किया कि जब मैं घर पर थी तब भी मैंने अपने व्यवहार से मातापिता को दुःखी किया, जब घर से भागी तब भी उन्हें दुःख दिया और आज मेरा दुःखी जीवन उन्हें रुला रहा है। ऐसा सोचकर वह इस निर्णय पर आ गई कि अब जीवन में चाहे मरने की भी परिस्थिति आ जाए तो भी मैं इसका जिक्र अपने घर पर नहीं करूँगी। Already मेरे माता-पिता मेरे कारण बहुत कुछ सहन कर चुके हैं। बस अब उन्हें मेरी तरफ से किसी बात की तकलीफ नहीं होगी। अपनी माँ के दिए पैसों से डॉली हॉस्पिटल का बिल चुकाकर समीर के घर चली गई। डॉली को अंचानक घर आए देख समीर चकरा गया।) समीर : डॉली ! तुम यहाँ कैसे आ गई? तुम्हारे हॉस्पिटल का बिल किसने चुकाया? डॉली : समीर ! तुमने तो मुझे वहाँ मरने के लिए छोड़ दिया था और वैसे भी तुम्हारी अम्मी की बहुत- इच्छा थी ना कि मैं अपने मायके से पैसे मंगवाऊँ, तो सुनो। मैंने अपनी मॉम को पैसे के लिए फोन किया था पर मॉम ने मुझे पैसे देने से साफ इन्कार कर दिया और उन्होंने मुझे यह भी कहा कि मेरा उस घर से कोई रिश्ता नहीं हैं। लेकिन जब मैंने अपनी पूरी परिस्थिति बताई तब उन्होंने अपने ड्राईवर के हाथों से पैसे भिजवाकर मेरे हॉस्पिटल का बिल चुका दिया। (इतना कहते ही डॉली की आँखें भर आई।) समीर : डॉली ! तुमने तो आते ही अपना ढोंग शुरु कर दिया। खैर अब मेरी बात ध्यान से सुन लो तुम चाहे वेश्या बन जाओ या नौकरी करो, मुझे उससे कोई मतलब नहीं है। मुझे तो सिर्फ पैसों से मतलब हैं, समझी.... डॉली : (चौंककर ) समीर ! ये तुम बोल रहे हो। काश यह सब मैं पहले समझ गई होती कि तुमने मुझसे नहीं मेरे पैसों से शादी की हैं। समीर : तुम जो भी समझो डॉली पर इस महिने की आखरी तारीख तक तुम्हारे महिने की सेलेरी मेरे हाथों में आ जानी चाहिए। नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होगा, कान खोलकर सुन लेना समझी। (बेचारी डॉली, पहले जो कदम उसने उठाए थे आज वही कदम उसकी ओर आकर खडे हो गए। जिस माँ के आँसू को पहले उसने ढोंग का नाम दिया था परिणाम स्वरुप आज उसी के आँसू को ढोंग कहा जा रहा हैं।

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