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मल्या चौसठ सुरपति...
___64 इन्द्रों की गणना 10 भवनपति के दक्षिण एवं उत्तर दिशा के मिलाकर
20 इन्द्र 8 व्यंतर के दक्षिण एवं उत्तर दिशा के मिलाकर
16 इन्द्र 8 वाणव्यंतर के दक्षिण एवं उत्तर दिशा के मिलाकर
16 इन्द्र असंख्य चन्द्र को मिलाकर 1 गिनने से
1 चन्द्र इन्द्र असंख्य सूर्य को मिलाकर 1 गिनने से
' 1 सूर्य इन्द्र 12 देवलोक में से 9 वें, 10 वें एवं 11 वें, 12 वें देवलोक के बीच में 1-1 इन्द्र होने से 12 देवलोक के कुल
10 इन्द्र .
कुल 64 इन्द्र सुर सांभली ने संचरिया .... 64 इन्द्र में सबसे बड़े अच्युतेन्द्र होने से उनकी आज्ञा से सभी देव मागध, वरदाम आदि तीर्थों के, पद्मद्रह आदि द्रहों के, गंगा आदि नदी के एवं क्षीरसमुद्र आदि समुद्रों में से पानी के कलश भरते हैं एवं भद्रशाल, नंदन वन आदि स्थानों से औषधियाँ एवं फूल के थाल भरकर लाते हैं। धूपदानी आदि उपकरण जो-जो सिद्धांत में बताये हैं, वे सभी लेकर शीघ्र -मेरु पर्वत गए आते हैं एवं प्रभु को देखकर हर्षित बनते हुए सभी कलशादिक सामग्री इन्द्र के सामने रखते हैं एवं स्वयं भगवान के गुण-गान गाने लगते हैं।
आठ जाति के कलश सोने का चाँदी का
1-1 जाति के कलश 8-8 हज़ार होते हैं। रत्नों का
8x8000=64000 कलश सोना रुपा एवं रत्न का सोना एवं रुपा का
ये कलश 25 योजन लम्बे होते हैं सोना एवं रत्न का
एवं उसकी नाल 1 योजन की होती है। रुपा एवं रत्न का मिट्टी का
8 जाति के कलश
স্কুল
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