Book Title: Jainism Course Part 03
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 166
________________ के समय को ध्यान में रखते हुए उस अनुसार अपना भी आहार- पानी का समय बना लेना चाहिए। शाम को चौविहार या तिविहार अवश्य करना चाहिए । लेकिन उन सब में गुरु भगवंत का उद्देश्य न आ जाए इस बात का पूरा-पूरा ख्याल रखना चाहिए। ऐसा करने पर साधु-संत पधारें तो उन्हें निर्दोष आहार- पानी वहोराने का उत्तम लाभ मिलता है एवं न भी पधारें तो श्रावक को प्रासुक अन्न-जल वापरने से लाभ ही है । दृष्टांत : एक बार विहार करते हुए हम बड़गाँव गए । प्रत्येक घर में गरम पानी एवं अचित्त फ्रूट आदि देखकर हमें आश्चर्य हुआ । शंका होने से हमने फ्रूट आदि नहीं वहोरे । तब उन्होंने कहा जब भी म.सा. पधारते हैं तब पूरा गाँव निर्दोष गोचरी वहोराने का लाभ लेने के लिए अपने लिए जो भी फ्रूट आदि वापरते हैं। वह सचित्त नहीं वापरते एवं कच्चे पानी का भी त्याग करते हैं। साथ ही चौविहार भी करते हैं। अपने घर पर भी ऐसी व्यवस्था करना यह विवेक की बात हैं। 2. साधु बीमार, वृद्ध, बाल, तपस्वी हो अथवा विहार में अव्यवस्था आदि विशिष्ट कारण आ जाए तो उपयोगवंत श्रावक को उस समय साधु भगवंत को जिस वस्तु की आवश्यकता हो, उस बात का उपयोग रखना चाहिए। अथवा कोई महात्मा उन्हें उपयोग (कुछ बनाने को कह दे ) दे तो बड़े उत्कृष्ट भाव से उस वस्तु को वहोरानी चाहिए। इसमें भी लाभ ही है। 3. श्रावक को साधु-साध्वी के माता-पिता की उपमा दी गई हैं। उनकी संयम आराधना का ध्यान रखना श्रावक का फर्ज़ है। श्रावक न तो उनके संयम को शिथिल बनने दे, और न ही संयम को सीदाने (मुरझाने) दे लेकिन जिस प्रकार से साधु ज्यादा से ज्यादा संयमी बने रहें, उस प्रकार से उन्हें संयम के उपकरणादि की अनुकूलता कर देने का विधान हैं। 4. स्थापना कुल : उदार वृत्तिवाले और विशाल परिवार वाले घर जहाँ साधु भगवंतों को जो वस्तु जब भी चाहे मिल जाए। जहाँ पर चार-पाँच बार जाने पर भी श्रावक मन में अभाव न लाकर भावपूर्वक वहोराते रहें, ऐसे घरों को स्थापना कुल कहते हैं। साधु भगवंत आचार्यादि के लिए या विशिष्ट कारण से ही ऐसे घर से गोचरी लाते हैं। 5. जो घर उपाश्रय के नज़दीक है एवं जिस गाँव से साधु-साध्वी भगवंतों का विहार अधिक होता है उनको विशेष उत्साह एवं विवेक रखना चाहिए। उनके लिए सब प्रकार के सुकृतों से सुपात्र दान का लाभ विशेष बन जाता है। कहीं घर कम हो या अपना घर पास में हो तो श्रावक को उत्कृष्ट भाव से ही लाभ लेना चाहिए । लेकिन मन में दुर्भाव नहीं करना चाहिए । साधु संतों को शाता मिलने से . उनके अंतर के आशिष प्राप्त होते हैं।

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