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। 2. वढ़वाण के श्रावक वढ़वाण शहर की बात है। वहाँ के निवासी जीवदया को अपना जीवन-प्राण मानने वाले • थे। एक दिन एक साधर्मिक बंधु बिमार हुए। परन्तु आर्थिक स्थिति अच्छी न होने से वह दवाई भी नहीं
खरीद सके। बिमारी से ग्रस्त वे साधर्मिक रात को बहुत हैरान-परेशान हो रहे थे। उसी शहर के एक नामी श्रावक को इस बात का पता चला। उस दिन उनको मौन था। चतुराई पूर्वक संकेत से दवाई के नाम का पेपर प्राप्त कर उन्होंने बाज़ार से सब दवाईयाँ खरीद ली। रात के 11-00 बजे वे धीरे से गरीब साधर्मिक के घर गए। अंधेरे में अन्दर जाकर दवाईयाँ चुपचाप रखकर वे श्रावक वापस लौट ही रहे थे कि अचानक उनको किसी वस्तु से ठोकर लगी। आवाज़ से वहाँ के लोग सावधान हो गए और ज़ोरजोर से चोर-चोर चिल्लाने लगे। कोलाहल सुनकर आस-पास के लोग इकट्ठे हुए और उस श्रावक को पकड़कर चोर समझकर मारने लगे। श्रावक मौन रहे। इस विषय में वे कुछ भी ज़ाहिर नहीं करना चाहते थे। लोगों ने उन्हें बहुत मारा, फिर भी उन्होंने मुँह से एक शब्द भी नहीं निकाला।
अंत में किसी समझदार व्यक्ति ने कहा “यह चोर नहीं होगा। क्योंकि चोर कभी भी चुपचाप इतनी मार नहीं खा सकता, दीपक लाओ।” दीपक लाकर देखा तो उनके आश्चर्य का पार नहीं रहा। “अरे ! यह हमने क्या किया? आवेश में आकर किसे मार दिया। यह तो हमारे सेठ है।" ऐसा कहकर सब लोग पश्चाताप करने लगे। वे श्रावक तो वहाँ से चुपचाप निकल पड़े। बाद में लोगों को सही बात का पता चला कि वे दवाईयाँ रखने आए थे। ऐसे परोपकारी, साधर्मिक भक्ति करने वाले आज भी है।
3. मन्त्रीवर पेथड़ मंत्रीश्वर पेथड़ मांडवगढ़ के मंत्री थे। एक वर्ष का छियालीस मण सोना उनका वेतन था। अढलक संपत्ति के मालिक पेथड़ सेठ राजसभा में जाते समय पालकी में बैठकर जा रहे हो तब सामने से यदि कोई साधर्मिक बंधु आता हुआ दिख जाए तो पालकी से नीचे उतरकर साधर्मिक को प्रेम से गले लगाते थे। फिर उसे आमंत्रण देते थे कि “बंधु! घर पधारो।” मांडवगढ़ के मंत्री जब उनको गले लगाएँ और घर आने का आमंत्रण दे तो कौन अस्वीकार करेगा?
पेथड़ शाह स्वयं राज-दरबार में जाते और उस साधर्मिक को घर भेजते थे। वहाँ पेथड़ शाह की माँ उनका स्वागत करती। बातचीत करते हुए पूछ लेती थी कि, “आप कहाँ से आए हो? क्या धंधा करते हो? आपको किस वस्तु की जरुरत है?” उस साधर्मिक को भविष्य में किसी बात की चिंता ही न रहे ऐसी पहेरामणी भेंट देती थी। ऐसी अपूर्व थी उनकी साधर्मिक भक्ति।