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राथमिक
र 1. महाराजा कुमारपाल की साधर्मिक भक्ति
___ एक दिन एक श्रावक ने कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य भगवंत हेमचन्द्राचार्य को जाड़ा वस्त्र वहोराया। वही वस्त्र पहनकर एक बार वे भव्य रथयात्रा में आये। कुमारपाल ने उन वस्त्रों में आचार्यश्री को देखा तो उनका हृदय दुःखी हो गया। उस वक्त उन्होंने गुरुदेवश्री को कुछ भी नहीं कहा। लेकिन रथयात्रा के पश्चात् कुमारपाल राजा तुरंत ही उपाश्रय में आए और कहा “गुरुदेव यह क्या ? हमारे जैसे भक्त होते हुए भी आपके शरीर पर ऐसा खादी का वस्त्र ? प्रभु ! लोग क्या कहेंगे? अठारह देश के राजा कुमारपाल ! और उसके गुरु के पास ऐसे वस्त्र ? लोग मुझे कृपण कहेंगे तथा मेरी टीका करेंगे। यह तो मेरे लिए कितने शर्म की बात है।”
. तब गुरुदेव ने कहा- “कुमारपाल ! आपको ऐसा विचार क्यों नहीं आया कि मेरे राज्य में ऐसा वस्त्र वहोराने वाला साधर्मिक बन्धु अपना निर्वाह कैसे कर रहा होगा? उसकी स्थिति कैसी होगी? आपको शर्म तो इस बात पर आनी चाहिए कि आप आराम से राज-सुख भोग रहे हो और आपके साधर्मिक कष्टपूर्वक जीवन जी रहे है।" यह सुनते ही कुमारपाल ने वहीं पर प्रतिज्ञा ली कि मैं हर वर्ष एक करोड़ सोना मोहरें साधर्मिक भक्ति के लिए खर्च करूँगा। इसके पश्चात् कुमारपाल महाराजा 14 वर्ष तक जीवित रहे और उन्होंने 14 वर्ष में 14 करोड़ सोना मोहरें साधर्मिक भक्ति के लिए खर्च की। वे निर्धन साधर्मिक को कम से कम 100 सोना मोहरें देते थे और यदि किसीको उससे ज्यादा जरुरत होती तो उतनी भी देते थे।
____एक वर्ष पूरा होने के पश्चात् एक दिन इस साधर्मिक भक्ति की देख-रेख करने वाले आभड़ सेठ ने कुमारपाल राजा से कहा “हे राजन् ! इस वर्ष की भक्ति का लाभ मुझे दीजिए। मैं इसके पैसे राजभंडार से नहीं लेना चाहता।" तब कुमारपाल राजा ने कहा - "नहीं भाई ! ऐसा नहीं हो सकता। पहले से ही मैं कृपण कहलाता हूँ, यदि तुम्हें लाभ दे दूंगा तो और ज्यादा कृपण कहलाऊँगा। मुझे धन पर रही मूर्छा उतारने का अनमोल अवसर प्राप्त हुआ है। तुम कोषाध्यक्ष के पास से अपनी एक करोड़ सोना मोहरें वापिस ले लो।”
__ आभड़ सेठ ने कई दलीले देकर वह लाभ लेने की कोशिश की। परंतु कुमारपाल ने आभड़ सेठ की विनंती को अस्वीकार किया। इस प्रकार 14 वर्ष तक कुमारपाल राजा ने प्रति वर्ष एक करोड़ सोना मोहरों की साधर्मिक भक्ति की। धन्य है ऐसे महान साधर्मिक भक्ति करने वाले राजा को !