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में हाथ मत डालने दीजिएगा। वर्ना सेप्टीक होने की पूरी संभावना है और यदि सेप्टीक बढ़ गया तो हाथ कटवाना भी पड़ सकता है (इतना कहकर डॉ. वहाँ से चला गया। इतने में खुशबू भी उठकर किचन में जाने लगी। तब) सुषमा : खुशबू बेटा ! कहाँ जा रही हो? खुशबू : मम्मीजी वो चटनी....? सुषमा : अरे चटनी तो मैं अपने आप साफ कर लूँगी। तुम जाओ आराम करो।
(खुशबू वहाँ से चली गई। वह तो सोच रही थी कि सासुमाँ ने आज डाँटा क्यों नहीं। डाँटने के बदले आज उनके मुँह से ऐसे मीठे शब्द कैसे निकल रहे है? अचानक अपने सासु के बदले व्यवहार से उसके आश्चर्य का कोई पार नहीं रहा। चार दिन तक तो सुषमा ने खुशबू को थोड़ा भी काम नहीं करने दिया। यदि खुशबू किचन में आ भी जाती तो सुषमा उसे प्रेम से वापस आराम करने भेज देती। यहाँ तक कि शाम का खाना अपने लिए अलग बनाकर फिर रात को जब प्रिन्स घर आता तब प्रिन्स और खुशबू के लिए अलग से जो खुशबू को पसंद होता वैसा गरमा गरम खाना बनाकर देती।)
(एक दिन अचानक खुशबू का भाई केतन उसे मिलने आया) खुशबू : अरे, भैया आप यहाँ कैसे? केतन : खुशबू ! पहले यह बताओ तुम्हारी तबियत कैसी है, घाव भर गया या नहीं? खुशबू : तुम्हें कैसे पता चला? .. केतन : तुम्हारी सासुमाँ ने ही बताया और उन्हीं के कहने पर मैं तुम्हे लेने आया हूँ। (केतन की बात सुनते ही खुशबू सोच में पड़ गई। इतने में सुषमा वहाँ आई।) सुषमा : अरे केतन बेटा ! तुम कब आए? आओ बैठो। (इतना कहकर सुषमा केतन के लिए पानी लेकर आई। खुशबू तो मात्र आँखे फाड़कर सब देखती ही रह गई।) केतन : आन्टीजी ! मैं खुशबू को लेने आया हूँ। सुषमा : अरे, हाँ बेटा ! खुशी से ले जाओ (खुशबू की ओर) जाओ बेटा दो-चार दिन रहकर आओ। खुशबू : मम्मीजी ! क्या आपने भैया को फोन करके बुलाया है ? सुषमा : हाँ बेटा, मैंने सोचा कि तुम ससुराल रहोगी तो छोटा-बड़ा कोई ना कोई काम करती ही रहोगी। रेस्ट मिल पाना मुश्किल है। चार दिन पियर जाओगी तो आराम मिलेगा और जल्दी ठीक हो