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(१५) तीर्थकर हुए. जिन्होंने मिथ्यात्वअवस्थाको देखकर-सम्यग्दशन, सम्यगज्ञान, और सम्यगचारित्ररूपी मोक्षशास्त्रका उपदेश किया. बस यहही जिनदर्शन इस कल्पमें हुआ. इसके पश्चात् अजितनाथसे लेकर महावीर तक तेईस तीर्थंकर अपने अपने समयमें अज्ञानीजीवोंका मोहअन्धकार नाश करते रहे." __ ७ साहित्यरत्न डॉ. रवीन्द्रनाथ टागोर कहे के"महावीरने डीडीम नादसे हिंदमें ऐसा संदेसा फैलाया किधर्म यह मात्र सामाजिक रूढि नहीं है, परंतु वास्तविक सत्य है, मोक्ष यह बाहरी क्रियाकांड पालनेसे नहीं मिलता. परंतु सत्यधर्म स्वरूपमें आश्रय लेनेसे ही मिलता है. और धर्म और मनुष्यमें कोई स्थाई भेद नहीं रह सकता. कहते आश्चर्य पेदा होता है कि-इस शिक्षाने समाजके हृदयमें जड करके बैठी हुई भावनारूपी विश्नोंको त्वरासे भेद दिये. और देशको वशीभूत कर लिया. इसके पश्चात् बहुत समय तक इन क्षत्रिय उपदेशकोंके प्रभावबलसें ब्राह्मणोंकी सत्ता अभिभूत हो गईथी" इत्यादि.
८ नेपालचंद्रराय अधिष्ठाता ब्रह्मचर्याश्रम शांतिनिकेतन बोलपुरवाला कहे छ के-" मुझको जैन तीर्थंकरोंकी शिक्षा पर अतिशय भक्ति है " इत्यादि--
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