Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 8
________________ गिरियक अतर अंगिरेयक-पर्वत ३.२७५ ब । अंजना (नरकगति प्ररूपणा)-बन्ध ३.१००, बन्धस्थान अंगल-११ ब । क्षेत्र प्रमाण २.२१५ अ । ३ ११३, उदय १.३७६, उदय स्थान १.३६२, अगलीचालन-१.१ ब । व्युत्सर्ग तप का दोष ३.६२२ अ । उदीरणा १४११, उदीरणा स्थान १.४१२, सत्त्व अंगोपांग-११ ब। ४.२८१, सत्त्वस्थान ४.२६८, ४.३०५, विसंयोगी अंगोपांग नाम में प्रकृति-११ ब; प्रकृति २.५८३ अ, भग १४०६ । सत् ४१७०, सख्या ४.६५, क्षेत्र ३.६५ ब, स्थिति ४४६४, अनुभाग १.६५, प्रदेश २.१६७, स्पर्शन ४४७६, काल २.१०१, अन्तर १८, ३ १३६ अ, बन्ध ३६८, बन्ध स्थान ३.११०, उदय भाव ३,२२० अ, अल्पबहुत्व१.१४४ अ । १३७४ अ, ३७५, उदय स्थान १.३६०, उदीरणा अंजना पवनंजय-इतिहास, १३४४ अ। १४११, उदीरणा स्थान १.४१२, सत्त्व ४२७८, __ अंजली-प्रमाण १४७२ अ । सत्त्व स्थान ४.३०३, त्रिसयोगी स्थान १.४०४ अ, अजसा-१.२ अ । सक्रमण ४८४ ब । अल्पबहुत्व ११६६ अ। अंजुका-इन्द्राणी ४५१३ ब । अंजन-१२ अ। चित्रा पथिवी ३.३८६ ब। देवकूर अंड--१२ अ । का दिग्गजेन्द्र-निर्देश ३.४७१ ब, विस्तार ३४८३, अंडज---जन्म १.२ अ । वस्त्र ३.५३१ अ । ४८५, ४८६, अकन ३.४४४ । पाण्डुक वन मे यम अंडर-१.२ अ, वनस्पति ३.५०६ ब, ३.५१० अ। देव का भवन ३ ४५० ब । प्रतिष्ठा-मण्डप का द्वार- अंडा-उत्पत्ति ३.५८७ ब । पाल देव ३४६१ ब। वरुण लोकपाल का यान अंतःकरण-१.२ ब । मन ३.२७० अ, ३.२७१ अ । ४५१३ अ । सनत्कुमार स्वर्ग का पटल-निर्देश अंतःकोटाकोटी-१.२ ब, सहनानी २.२१८ ब । ४५१७, विस्तार ४.५१७, अकन ४५१५, आयु 3 अंत -१२ ब, गणित २२६ ब, २२३० ब, गणहानि १२६७ । २.२३२ अ । नरक पटल-निर्देश २.५८० ब, अंजन (कूट) -१२ अ । मानुषोत्तर-निर्देश ३.४७५ अ, विस्तार २.५८० अ, अकन ३.४४१ । नारकीविस्तार ३४८६, अकन ३.४६४ । रुचकवर-निर्देश अवगाहना १.१७८, आयु १.२६३। परमाणु ३.१६ ३.४७६ अ, विस्तार ३४८७, अकन ३.४६८,४६६ । अजनगिरि-१२ अ । नन्दीश्वर द्वीप मे--निर्देश ३ ४६३ अंतकाल ---४.३८५ ब। ब, विस्तार ३.४८७, वर्ण ३४७८, अकन ३४६५, चित्र ३.४६५ । रुचकपर्वत का दिग्गजेन्द्र ३ ४७६ ब। अंतकृत-१.२ ब, केवली १.२ ब, २.१५७ अ, दशाग १२ व, ४६८ अ। अजनमूल-१.२ अ । चित्रा पृथिवी ३.३६१ अ। अंतडी-१.२ ब, औदारिक शरीर १.४७२ ब । अंजममूल (कूट)-मानुषोतर-निर्देश ३.४७५ अ, विस्तार ३४८६, अकन ३ ४६४ । रुचकवर-निर्देश अंतधन-गणित २.२३० ब । ३.४७६ अ, विस्तार ३४८७, अक ३.४६८, अंतप-मनुष्य लोक ३.२७५ ब । ४६६ । अंतमति--सल्लेखना ४.३०५ ब । अजनमूलक-१.२ अ । अंतरंग-१.२ ब, उपयोग २.४०६ ब, कारण २.६२ अ, अंजनवर--१.२ अ। सागर द्वीप -निर्देश ३४७० अ, २७२ ब, चिह्न २.४७८ ब, छेद १२१६ ब, विस्तार ३.४७८, अकन ३ ४४३, जल का रस ३.४७० २३०६ ब, ३ २६ अ, ४.५३३ ब, जल्प ३.५४३ अ, अ, ज्योतिष चक्र २३४४ ब, अधिपति देव ३ ६१४ । तत्त्व ३.३३६ अ, तप २.३६१ अ, त्याग ३.२७ ब, अंजन शैल-१२ अ । वक्षार गिरि-निर्देश ३.४६० अ, ३.२८ ब, धर्मध्यान २.४६५ ब, परिग्रह ३.२७ ब, नाम निर्देश ३४७१ अ, विस्तार ३४८२, ३.४८५, ३२८, ३२६ अ, प्रत्यय ३.१२५ ब, प्रमेय ३४८६, अकन ३.४४४, ३४६४ के सामने, वर्ण ३.१४४ अ, प्रायश्चित्त ३१५८ब, शुद्धि ३.२९ अ, ३४७७ । हिंसा ४.५३६ अ । अजना-१.२ अ । चतुर्थ नरक-निर्देश २.५७६ अ, अंतर--१.२ ब, अनुयोगद्वार १.१०२ अ, १.१०३ अ, पटल इन्द्रक श्रेणीबद्ध २ ५७८, २५८०, विस्तार गति परिवर्तन १.५ अ, साता असाता ३.५६२ ब । २.५७६, २.५७८, अंकन ३.४३६, ३.४४१ । प्ररूपणा-ओघ आदेश १.७-२२, अनन्तानुबन्धी नारकी-अवगाहना १.१७८, अवधिज्ञान १.१९८, १.६१ ब, उदीरणा १.४१२, उपशम १.४३८, आयु १.२६३ । स्थितिबन्ध ४.४५८ब, स्वामित्व सन्निकर्ष १.२४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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