Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 18
________________ विधि में मंदिर व मान- स्तंभ का अभिषेक सामने दर्पण में प्रतिबिंब देखकर 81 कलशों के मंत्रों द्वारा होता है। तीर्थ क्षेत्रों की पूजा भी होती है। इन सबकी पूजा प्रतिष्ठित मूर्ति और तीर्थकर देव के निमित्त से होती है। इनकी पूजा में गुणगान भगवान् के होते हैं। पूजा में मंदिर व तीर्थों के अचेतन पाषाणों के गुणगान नहीं होते । इसीप्रकार वास्तु-विधान या वास्तु-शांति मे आदर की दृष्टि से मंदिर को 'देवता' कह दिया गया है, क्योंकि वहाँ जिनेन्द्र विराजमान होगे। प्रतिष्ठाचार्यों एवं गृहस्थाचार्यों के लिए यह कृति अत्यंत उपयोगी है। हिमालय की यात्रा के अवसर पर परमपूज्य आचार्यश्री 108 विद्यानंद जी महाराज ने बद्रीनाथ जाते हुए मध्य में श्रीनगर में विश्राम किया। वहाँ के मंदिर और मूर्ति का अवलोकनकर प्रतिष्ठाग्रन्थ के अनुसार 'गज-आय' मे पुनः विराजमान की। उससे वहाँ समाज की जो शोचनीय स्थिति थी, उसमे परिवर्तन होकर सुख-शांति का वातावरण हो गया। इस पर प्रतिष्ठाचार्यों को ध्यान देना चाहिए। आध्यात्मिक शांति के लिए मंदिर एवं भौतिक सुरक्षा हेतु गृह आदि की निर्माण-कला 'वास्तुविद्या' है। 'जैन वास्तुविद्या' नामक इस कृति के विद्वान् लेखक डॉ० गोपीलाल जी 'अमर', भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली है और प्रकाशक है: भारत की प्राचीन भाषा प्राकृत, शौरसेनी की शोध-सस्था 'कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली। इस कृति में वास्तु संबंधी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का विस्तारपूर्वक विवेचन करते हुए जिनालय और आवास की रचनाविषयक नियम एव उपयोगी साहित्य संगृहीत है। भवन-निर्माताओं की जिज्ञासा- पूर्ति हेतु इस अपूर्व रचना के प्रेरणास्रोत एवं मार्गदर्शक हैं: परमपूज्य आचार्यश्री 108 विद्यानन्द जी मुनिराज; जो प्राचीन साहित्य का निरन्तर अध्ययन- चितन-मनन से उपलब्ध सामग्री प्रदानकर लेखको को अपने शुभाशीर्वाद के साथ प्रोत्साहन प्रदान करते रहते है। संपादन- कला के विश्रुत विद्वान् डॉ० सुदीप जैन इस ग्रन्थ के संपादक हैं। आशा है महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के पठन से भवन निर्माण-संबंधी पूर्व - बाधाओं एवं आशंकाओं का निराकरण होकर यथार्थ मार्गदर्शन मिलेगा। अंत मे परमपूज्य 'आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन एव लेखक 'अमर' जी को उनकी इस कृति द्वारा वर्तमान आवश्यकता पूर्ति हेतु धन्यवाद । जैन वास्तु-विद्या नाथूलाल जैन शास्त्री इन्दौर IX

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