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भवन की दीवार से दूर हों। शौचालय दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण में हो । भवन के दक्षिण और पश्चिम में अधिक ऊँचे वृक्ष लगाए जा सकते हैं। परंतु भवन के पूर्व एवं उत्तर में कम ऊँचाईवाले वृक्षों के बगीचे पार्क हो, जिससे सूर्य का प्रकाश न रुके। कुआँ या ट्यूबवेल पूर्व उत्तर में, दीवार और गेट से थोड़ी दूर पर हो। उत्तर-पश्चिम में ओवरहेड टैंक स्थापित करें। भारी सामान का भंडारण दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में और वाहनों की पार्किंग उत्तरपश्चिम में हो। भारी मशीनरी दक्षिण, पश्चिम या दक्षिण-पश्चिमी दिशा में स्थापित करे। आग संबंधी सभी कार्य जैसे भट्टी, बॉयलर आदि दक्षिण-पूर्व में रखे !
उद्योग में लगनेवाली सामग्री दक्षिण, पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखने का स्थान (स्टोर) हो। उत्तर-पूर्व मे तैयार माल रखे। अधबना माल पश्चिमी क्षेत्र में और तैयार माल उत्तर-पश्चिम में रखा जा सकता है। कच्चे माल का उत्पादन दक्षिण-पश्चिम से प्रारम्भ हो । उसकी निकासी उत्तर-पूर्व की ओर से हो ।
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वास्तु-विद्या के नए चमत्कार
भवनो के निर्माण मे यत्रो की भूमिका दिनोदिन बढ रही है। परपरागत सामग्री का स्थान कृत्रिम सामग्री लेती जा रही है। रेडीमेड दीवारो आदि को नट-बोल्ट से कसकर बड़े-बड़े भवन बनाए जा सकते हैं; नट-बोल्ट खोलकर वही भवन स्थानान्तरित किये जा सकते है।
विद्युत उपकरणों, कम्प्यूटरों, यत्र- मानवो (रोबट्स) आदि पर आधारित व्यवस्थाओं और सुविधाओं ने भवनों को इतना चमत्कारी, स्वयंचल ( ऑटोमैटिक) और सवेदनशील (सेंसिटिव) बना दिया है कि उनके लिए एक नया शब्द चल पड़ा है, इटैलिजेट बिल्डिंग' (समझदार भवन) ।
भवनों की सुरक्षा, अतरग यातायात, वार्तालाप आदि में इटरकॉम, शॉर्ट-सर्किट टी.वी. आदि के साथ अब कम्प्यूटर की सहायता भी ली जाने लगी है। अवांछित व्यक्तियो और सामान के प्रवेश का निषेध, वातावरण का नियंत्रण (एयर कंडीशनिग). आग, तूफान, भूकंप आदि की भविष्यवाणी और उनसे बचाव, विद्युत् आपूर्ति और जल के शुद्धीकरण की स्वचालित व्यवस्था, भवनो का रखरखाव और साज-श्रृंगार (इटीरियर डेकोरेशन) आदि यत्रचालित और कंप्यूटरीकृत हो चले हैं।
ॐ वास्तु-विद्या
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