Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 109
________________ जाती है, जिससे वह ताज़ातर फैशन को ही सर्वश्रेष्ठ मानने लगता है। यह परिवर्तन इतना क्रमिक होता है कि लोग समझ ही नहीं पाते कि वे वास्तविकता से भटककर कितनी दूर जा पहुँचे हैं। यूरोप के लोगों में ऐसी आदत नही पनप सकी, वे केवल परिणाम पर दृष्टि रखते हैं; वे उन सीढ़ियों पर नज़र नहीं डालते, जिनसे होकर परिवर्तन आया होता है। जब उन्हे पता लगता है कि वह स्थापत्य-शैली अपने वास्तविकरूप से भटककर बहुत दूर जा पहुँची है, तब उन्हे धक्का लगता है; वे उस परिवर्तन में रच. बस नहीं पाते, इसलिए उसकी भर्त्सना करने लगते हैं। ठीक यही बात हिंदू स्थापत्य की दस मे से नौ बातो पर लागू होती है। हममें से बहुत कम ऐसे है, जो यह जानते है कि अपनी अतिश्रेष्ठ मध्यकालीन कला का मूल्य समझने के लिए कितनी समझबूझ चाहिए होती है। इसीलिए बहुत कम लोग यह समझते हैं कि भारतीय शिल्प-शैलियों की भर्त्सना के पीछे व्यवस्थित और नियमानुसार समझबूझ की अत्यन्त कमी हुआ करती है। DO (जन बस्तु-विधा

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