Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 118
________________ 58. दण्डश्- चैत्य-ध्वजाधारस्तस्माल्-लक्षण-वेदिना, दण्डः सुलक्षणः कार्यः समानो ग्रन्थि-पर्वभिः । (- पं. कल्याणविजय गणी, कल्याण-कलिका, 11,301) * 59. ओं, जल-स्थल - शिला- वालुका- पर्यन्तर-भूमि शोधन-पुरस्सर परिपूरित-शुद्धवालुकेष्ट- कोमल-मृत्स्नाधिष्ठिताधिष्ठाने, पंच- विध-रत्न- रमणीय-पचालंकारारोपित - शातकुम्भमय स्तम्भ-संभृते, सतत शैत्य-मान्द्य-सौरभ-संसक्तमन्दानिलान्दोलित-पताका-पक्ति-विलासिते, सुवर्ण-शिखर- विन्यस्त-माणिक्यमयूख - मालाम्बर - विरचित श्री-विमान- विराजमाने, चतुर - दिक्षु गोपुर-द्वारतोरणोमय पार्श्व- प्रदेश - विनिहित-मणि-मय-मंगल-कलशे, विविध विमलाम्बरविरचित-वितान विलम्बित-मुक्ता-दामाद्यलंकृते, मुक्ति-वधू स्वय- वर-श्री- विवाहविभव- निवास - भासुरे, समुचित समस्त स पर्याय द्रव्य-सन्दोह - समन्वित- विपुलतर चैत्यायतने, जिनेन्द्र-कल्याणा-भ्युदय महा महोत्सवाभिरामे वास्तुमण्डपाभ्यन्तरे पुष्पांजलिः । (पण्डित आशाघर, पूजा-पाठ, पृ. 151(अ) 1) * 60 अंगुष्ठ- मात्रं बिम्बं च यः कृत्वा नित्यमर्चयेत् । तत् फलं न च वक्तुं हि शक्यतेसख्य- पुण्य युक् ।। * 61. नेमिनाथो वीर - मल्लिनाथौ वैराग्य-कारकाः । त्रयो वै मंदिरे स्थाप्या, न गृहे शुभ दायकाः ।। (- शिल्प- स्मृति- वास्तु-विद्या, 1321) 62. पुर-गाम-पट्टणादी, लोइयसत्थं च लोय-ववहारो । धम्मो वि दया-मूला विणिम्मियो आदि- बम्हेण । । * 63. अभिषेक प्रेक्षणिका - क्रीडन-संगीत-नाटकालोक-गृहैः, शिल्पि विकल्पित-कल्पन-सकल्पातीत-कल्पनैः समुपेतैः । (- आचार्य पूज्यपाद, नन्दीश्वर-भक्ति, श्लोक 221) * 64. कोटि- वर्षोपवासश्च तपो वै जन्म-जन्मनि, (जैन वास्तु-विद्या कोटि-दानं कोटि-दाने प्रासाद-फल-कारणे (-शिल्प- रत्नाकर, 13, 851) * 92

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