Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 126
________________ शिखर शुकनासा शुकनासिका सप्त-शाख संधार-प्रसाद सभा मंडप सभा-मार्ग समवसरण : एक प्रकार की अलंकृत छत, जिसकी संरचना अनेक मंजूषाकार सूच्यग्रों से होती है। समतल वितान : अवनतोन्नत तलवाली ऐसी छत, जो साधारणतः पक्तिबद्ध सूचियो से अलंकृत होती है। : तीर्थकर के उपदेश के लिए देवों द्वारा निर्मित ऐसे मडप की अनुकृति; जिसमें केवलज्ञान के अनतर दिये जाने वाले तीर्थकर के उपदेश सुनने को उपस्थित देवो, मनुष्यो और पशुओ के लिए आसन योजना-बद्ध होते हैं। : बनावट सहित वर्गाकार । सम-चतुरच सर्वतोभद्र : मंदिर का ऊपरी भाग या छत; उत्तर भारतीय शिखर सामान्यतः वक्र-रेखीय होता है, किन्तु दक्षिण भारतीय शिखर या तो गुंबदाकार होता है या अष्टकोण अथवा चतुष्कोण । : उत्तर भारतीय मंदिर के शिखर के सम्मुख भाग से संयुक्त एक बाहर निकला भाग, जिसमें एक बड़े चैत्य- गवाक्ष की सयोजना होती है। सिद्धासन संवरणा : देखिए 'शुकनासा' । : द्वार की सात अलकृत पक्खों सहित चौखट । : प्रदक्षिणा पथ सहित मंदिर । : अर्थात् रंग-मंडप । : अर्थात् चतुर्मुखः एक प्रकार का चारों ओर सम्मुख मदिर; चारों ओर मूर्तियों से संयोजित एक प्रकार की मदिरअनुकृति । सर्वतोभद्रका : चारो ओर मूर्तियों से संयोजित एक प्रकार की मंदिरअनुकृति । सलिलांतर खड़ा अंतराल । सहस्रकूट (न - . : पिरामिड के आकार की एक मंदिर- अनुकृति, जिसपर एक सहस्र ( अनेक ) तीर्थकर मूर्तियाँ उत्कीर्ण होती हैं। : अर्थात् ध्यानासन में आसीन तीर्थंकर की एक मुद्रा । : छत, जिसके तिर्यक् रेखाओं में आयोजित भागों पर घंटिकाओं के आकार लघु शिखर होते हैं। 100

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