Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 117
________________ 53. दृष्ट जिनेन्द्र भवन मणि- रत्न - हेमसारोज्ज्वलै. कलश-चामर-दर्पणाद्यैः, सन्मगलै. सततमष्ट शत-प्रभेदैर्बिभ्राजित विमल - मौक्तिक -दाम-शोभम् । (- आचार्य सकलचन्द्र, दृष्टाष्टक स्तोत्र, (ज्ञानपीठ पूजाजलि' मे प्रकाशित) ।) * 54. पुरिसुब्व गिहस्संगं हीण अहियं न पावए सोह, तम्हासुद्ध कीरइ जेण गिह हवइ रिद्धिकरं । (-ठक्कुर फेरु, वत्-सार-पयरण, (सं. भगवानदास जैन), जयपुर (जैन विविध ग्रंथमाला, मोतीसिंह भोमिया का रास्ता ). 19361) * 55. पुढवी- सिलामओ वा फलअमओ तणमओय सभारो, होदि समाधि- णिमित्त उत्तर-सिर तहव पुव्व-सिरो । (आचार्य शिवार्य, मूलाराधना, (भगवती आराधना) ।) * 56. इच्छामि, भते ! चेदिय-भत्ति काउस्सग्गो कदो तस्सालोचेउदु । अहलोय- तिरिय- लोय-उड्ढ लोयंमि किट्टिमाकिट्टिमाणि जाणि जिणचेइयाणि ताणि सव्वाणि तीसु वि लोएसु भवणवासिय-वाणवितरजोइसिय-कप्पवासिय त्ति चउव्विहा देवा सपरिवारा दिव्वेण गघेण, दिव्वेण पुप्फेण, दिव्वेण धूवेण, दिव्वेण चुण्णेण, दिव्वेण वासेण, दिव्वेण ण्हाणेण णिच्च-कालं अच्चति, पुज्जति, वदंति, णमस्संति । अहमवि इह संतो तत्थ सताइ णिच्च काल अच्चेमि, पुज्जेमि, वंदामि, मसामि । दुक्ख क्खओ, कंम्म-क्खओ, बोहि-लाहो, सुगदि-गमणं, समाहि-मरण, जिण-गुण-सपत्ती होदु मज्झं । (- कृत्रिमा कृत्रिम जिन-पूजार्घ्य दशभक्ति ।) * 57. साल-त्रयान् सद-वन- केतु-मानस्तम्भालयान् मण्डल- मंगलाढ्यान् । गृहान् जिनानामकृतान् कृतांश्च भूतेश-कोणस्थ-दले यजामि ।। (- पंडित नेमिचन्द्रदेव, प्रतिष्ठा-तिलक, 1, 9; बाहुबली (ब्र. माणिकचंद, शिवलाल TET), 1992) जैन वास्तु-विद्या 91

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