Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust
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क्रिरोलकाभ्रके चैव मणिभेदाश्च बादराः, गोमेदो रुचकाङ्कश्च जलकान्तो रवि-प्रभः । वैडूर्य चन्दकाङ्कश्च जलकान्तो रवि-प्रभ., गैरिकश्चन्दनश्चैव वर्चुरो रुचकस्त्था ।। मोठा मसारगल्लश्च सर्व एते प्रदर्शिताः, त्रिशत्-पृथिवी-भेदा, भगवमिर्जिनेश्वरैः ।
(-आचार्य अमृतचन्द्र सूरि, तत्त्वार्थसार, 2158-621)
32 पुढवी-आऊ-तेऊ-वाऊ य वणफ्फदी तहा य तसा।
छत्तीस-विहा पुढवी, तिस्से भेदा इमे णेया।। पुढवी य बालुगा सक्करा य उवले सिला य लोणे य, अय तव तउय सीसय रुप्प सुवण्णे य वइरे ये। हरिदाले हिंगुलए मणोलिसा सस्सगंजण पवाले य, अब्भ-पडलम्भबालुय बादर-काया मणिविधीया। गोमज्झगे य रुजगे अंके फलिहे लोहिदंके य, चदप्पम वेरुलिए जलकते सूरकते य। गेरुय चदण वव्वग वयमोए तह मसारगल्ले य, ते जाण पुढवि-जीमा जाणित्ता परिहरेदबा।
(आचार्य कुन्दकुन्द, मूलाधार, 58/205-9)
33. क्वचिच्च कुग्राम-बहिश्च दूरतो, महत्स्वगाधाति-भयंकरेषुयत्। सदैव कूपेषु जलं सुदुर्लभं, हरन्ति यंत्रैरतियत्नतो जनाः।।
(आचार्य उग्रादित्य, कल्याणकारक)
34. विस्तार के लिए द्रष्टव्यः आचार्य गोपीलाल अमर, 'जैनिज़्म एंड द
एन्वायरनमेटल हार्मनी', वर्ल्ड रिलीज़न्स एंड द एन्वायरनमेंट, नई दिल्ली (गीताजलि प्रकाशन), 1988।
35. नर-सुर-तिर्यङ्-नारक-योनिषु परिप्रमति जीव-लोकोयम् ।
कुशला स्वस्तिक-रचनेऽतीव निदर्शयति धीराणाम्।।
जन वास्तु-विधा)

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