Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 85
________________ आयताकार मकान बन सकें। उत्तर-पूर्व या दक्षिण-पूर्व में मार्ग हों। निर्माण कार्य प्रारंभ करने से पूर्व ही कुआँ या ट्यूबवेल, उत्तर-पूर्व अर्थात् 'ईशान कोण मे बनाया जाए। छत पर पानी की टंकी वायव्य कोण में हो। अग्नि-शमन आदि की वैज्ञानिक व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जाए। प्रथम तल से ऊपरी तल की ऊँचाई कम रखनी चाहिए, परतुं बहुमजिले भवनों में ऐसा करना कठिन होता है, अतः सबसे ऊपर की मंजिल की ऊँचाई थोड़ी कम रखी जा सकती है। ऊपर की मंजिलों का निर्माण इस तरह से करकें कि प्रातःकालीन सूर्य किरणे सभी आवासो को प्राप्त हों और वायु का प्रवेश किसी भी आवास में नहीं रुके। ज्यादातर आवासो की बालकनी पूर्व और उत्तर दिशा में ही हो, और जहाँ तक संभव हो दक्षिण या पश्चिम दिशा में नहीं। स्टोर आदि आवास के दक्षिण-पश्चिम भाग में ही हो। सीढियाँ दक्षिण या पश्चिम दिशा में या जहाँ तक संभव हो दक्षिणीपश्चिमी क्षेत्र में बनाएँ, उत्तर-पूर्व में नहीं। आवासों के मुख्य दरवाजे पूर्व, उत्तर-पूर्व और उत्तर-पश्चिम की ओर हो। रसोईघर दक्षिण-पूर्व या उत्तरपश्चिम मे हो। छोटे वाहनों की पार्किंग का ज़मीन के अदर (अंडरग्राउंड) स्थान उत्तर-पूर्व में और बेसमेंट उत्तर या पूर्व क्षेत्र में हों, दक्षिण एव पश्चिम मे नहीं। उत्तर-पूर्व के खुले स्थान में पार्क हो । वृक्ष कम ऊँचाईवाले हों, ताकि वायु-संचार नहीं रुके। दक्षिण दिशा में बड़े वृक्ष भी लगाए जा सकते हैं। औद्योगिक उपयोग के भवन औद्योगिक सस्थान के लिए भूखंड के पूर्व में, उत्तर में या उत्तर-पूर्व में मार्ग उत्तम होता है। प्रवेशद्वार उत्तर-पूर्व में या पूर्व मे या उत्तर-पश्चिम में हो। औद्योगिक भवनों में दक्षिणी-पश्चिमी भाग ऊँचा बनाया जाए। संस्थान का प्रशासनिक भवन फैक्टरी भवन से नीचा हो, और मध्य में उत्तर या पूर्व दिशा में हो। जैनरेटर का कमरा दक्षिण में हो या दक्षिण-पूर्व मे । भूखंड के उत्तर-पूर्व में अन्य दिशाओं की अपेक्षा अधिक खुला स्थान, दरवाजे, खिड़कियाँ आदि हों। सुरक्षा कर्मचारियो के लिए स्थान उत्तर-पश्चिम या उत्तर मे बनाएँ। कर्मचारियों के आवास दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिमी औद्योगिक जन वास्तु-विधा

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