Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 97
________________ गृह-मंदिरों का स्थापत्य अन्य मंदिरों की ही भाँति हो। गृह-मंदिर में तीर्थकर की मूर्ति अधिक-से-अधिक ग्यारह अंगुल ऊँची स्थापित की जाए। दो, चार, छह, आठ और दस अंगुल की मूर्तियाँ गृह मंदिर में नहीं स्थापित की जाएँ; अन्यथा अशुभफल की संभावना रहेगी। बारहवें तीर्थकर वासुपूज्य, उन्नीसवें तीर्थकर मल्लिनाथ, बाइसवें तीर्थकर नेमिनाथ और चौबीसवें तीर्थकर महावीरस्वामी की मूर्तियाँ गृहमन्दिर में स्थापित करने का निषेध है क्योंकि ये तीर्थकर विशेषतः वैराग्य-वर्धक माने गये हैं।60 निधीधिका : निसई या नसिया निषीधिका', 'निषधिका' और 'निषद्या' शब्दो का एक ही अर्थ है: निसही या निसई या नसिया । यह वास्तव में किसी चरित्रधारी महापुरुष का शिला या स्तंभ या मडप के रूप में स्मारक होता है, जिससे उसे मन्दिर की भॉति महत्त्व दिया जाता है। आश्चर्य नहीं, यदि प्राचीन जैन स्तूप विशाल निषीधिकाएँ ही रहे हों। जैन साहित्य मे स्मारक, समाधि, मकबरा आदि शब्दों का चलन नहीं हुआ; क्योकि जैन आचार-विचार मे स्मारक-पूजन या गोर-परस्ती का विधान नहीं है इसीलिए जैन समाज में निषीधिका' के रूप मे एक अलग शब्द प्रचलित हुआ। प्राकृतभाषा मे "णिसीधिया और णिसीहिया' शब्दों का प्रयोग करते हुए आचार्य शिवकोटि (दूसरा नाम शिवार्य) ने लगभग दो हजार वर्ष पूर्व 'मूलाराधना' (दूसरा नाम 'भगवती आराधना) में (गाथा 1967 से 1973) और उसके छह-सात टीकाकारों ने, निषिधिका के विभिन्न पक्षों पर विस्तार से लिखा है। आचार्य वट्टकेर आदि ने भी लिखा है। चरित्रधारी महापुरुष अर्थात् साधु के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति का स्मारक चरण-चिह्न या किसी अन्य रूप मे बनाने का विधान जैन-वास्तुविद्या या शिल्प-शास्त्र में नहीं है। साधु का स्मारक भी चरण-चिह्न के रूप में बनाया जाए, न कि मूर्ति या मन्दिर के रूप में। पाषाण पर उत्कीर्ण चरण-चिह्न निषीधिका के आदिमरूप माने जा सकते है; जिन पर कालान्तर मे मंडप, गुमटी, टोक आदि बनाए जाने लगे। पास में मन्दिर आदि के निर्माण से निषीधिकाओं का महत्त्व बढा। अतिशय, चमत्कार, मंत्र-तंत्र आदि के जुड़ जाने से निपीधिकाओ ने लोकप्रिय स्थानों का रूप ले लिया। (जन वास्तु-विधा 71

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