Book Title: Jain Vastu Vidya
Author(s): Gopilal Amar
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 34
________________ वास्तुविद्या और अर्थशास्त्र - 'आवश्यकता आविष्कार की जननी है, यह बात पुरानी पड़ गयी है; अब तो आविष्कार आवश्यकता का जनक बन बैठा है। कुछ ऐसा ही चक्र वास्तु-विद्या और अर्थशास्त्र के मध्य है। वास्तु-विद्या रोटी कपड़ा और मकान के मकान' तक ही सीमित नहीं रह गई है। मकान बनाऊ कंपनियाँ, नगरबसाऊ व्यवसायी, बहुराष्ट्रीय उद्योगपति, रेल-उद्योग आदि-आदि को धन चाहिए; लेकिन उससे पहले पैर टिकाने को जगह चाहिए; जगह पर विज्ञान सम्मत भवनो की श्रृंखला चाहिए। आज वास्तु-विद्या और अर्थशास्त्र का वही संबंध बन गया है, जो चोली और दामन का होता है; यद्यपि यह संबंध अपने ढंग से और अपने स्तर पर प्राचीनकाल में भी था । 21 एक से दूसरे को अलग करके वास्तु-विद्या और अर्थशास्त्र का अध्ययन पूर्ण नहीं हो सकता है। समाजशास्त्र समाजशास्त्र और सामाजिकी (ह्यूमैनिटीज) के शताधिक रूपों का सबंध, प्रत्यक्ष या परोक्ष, वास्तु-विद्या से अवश्य है। कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं । राजनीति और प्रशासन को वास्तु-विद्या ने अगम- अमेद्य दुर्ग दिए, दिव्य भव्य भवन दिए, स्वर्ग-सदृश नगर दिए, भारत और श्रीलका के मध्य समुद्र सेतु दिया, चक्रव्यूह और लाक्षागृह की कल्पना दी, सिन्धु सभ्यता के नगर- निवेश दिए और भी बहुत कुछ दिया । मनोविज्ञान के विकास मे वास्तु-विद्या का योगदान मौलिक है। 'मन चंगा तो कठौती में गंगा': कठौती यानी काठ की पतीली में भरा पानी भी गंगाजल का आनद देता है: अगर मन चंगा हो, प्रसन्न हो । मन चंगा होता है स्थिरता (स्टेबिलिटी) से स्थिरता आती है तब, जब सिर ढकने को छप्पर हो | 22 छप्पर की विद्या ही वास्तु-विद्या है। 23 फलित 24 और गणित ज्योतिष वास्तु-विद्या में आदि से अंत तक व्याप्त हैं। गृहस्वामी की तो बात ही क्या, गृह या भूमि के भी ग्रह-नक्षत्र का मिलान अनिवार्य बताया गया है। गणित ज्योतिष का पर्यावरण और विज्ञान से सीधा संबंध है, इसलिए उसके अनुकूल बना घर ही शुभ या लाभदायक जैन वास्तु-विद्या

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