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छोड़ती है, उसकी ताज़गी छीन लेती है; यहाँ तक कि उसे जल्दी बूढ़ा कर देती है। उपकरणों या औज़ारों का स्तर
निर्माण कार्य में जो औज़ार, मशीनें आदि उपकरण उपयोग में लाए जाएँ, वे भी अच्छे स्तर के हों; ताकि निर्माण मज़बूत हो, सुंदर हो और शांतिदायक हो। निर्माण के पश्चात अंतरंग और बाह्य साज-सज्जा के विषय और सामग्री पर भी ध्यान दिया जाए। निर्माता और उसके परिजनों की रुचि के साथ संस्कृति, लोक-व्यवहार आदि से भी साज-सज्जा की संगति बैठनी चाहिए। घर-गृहस्थी में उपयोग में आनेवाली वस्तुयें भी इसी प्रकार सात्त्विक, दिव्य और भव्य होनी चाहिए।
वास्तु-विद्या में शिल्पी के अष्ट-सूत्र' का उल्लेख मिलता है 1. दृष्टि-सूत्र-आँखों से ही इतनी सही नाप-जोख कर लेना, जितनी औज़ारों से की जाती है। 2. हस्त-लगभग 45 सेंटीमीटर या डेढ़ फुट लंबी पट्टी, जो सरल रेखा खींचने और नापने के काम आती है और जिसके नौ अधिष्ठाता देव रुद्र, वायु, विश्वकर्मा, अग्नि, ब्रह्मा, काल, वरुण, सोम और विष्णु होते हैं। 3. मुंज-मूज' नामक घास से बनी डोरी, जिसके सहारे लबी सरल रेखा खीची जाती है, या दीवाल आदि को सरल रेखा मे बनाने के लिए जो एक छोर से दूसरे छोर तक बाँधी जाती है। 4. कार्पासक-कपास का सूत, जो साहुल (प्लम्ब लाइन) लटकाने के काम आता है। 5. अवलंब अर्थात् साहुल या लोहे का ठोस लद्द, जिसे सूत से लटकाकर दीवाल आदि की ऊपर से नीचे तक की सिधाई जाँची जाती है। 6. काष्ठ-गुनिया या ट्राइंग ऐंगल, जिससे कोण बनाने या नापने मे मदद ली जाती है। 7. सष्टि या साधनी-जो फर्श आदि को समतल बनाने में स्पिरिट लेबल की तरह सहायक होती है। 8. विलेख्य अर्थात् परकार (पेयर ऑफ डिवाइडर्स), जिससे रेखाओं आदि की दूरी तुलनात्मक दृष्टि से नापी जाती है।
शिल्पी के अष्टसूत्र सम्बन्धी इन सभी उपकरणों के रेखाचित्र (अग्रिम पृष्ठ पर) प्रस्तुत हैं:
जैन वास्तु-विधा